SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वणन्तरे पसरह मेह-जालु [(वण)+ (अन्तरे)][(वण)-(अन्तर)7/1] (पसर) व 3/1 अक [(मेह)-(जाल) 1/1] अव्यय (अम्वर) 7/1 जंगल के अन्दर फैलता है (फैला है) बाबलों का समूह उसी प्रकार प्राकाश में तिह अम्बरें 8. तडि तब्यड पडद घणु गज्जइ जारगइ रामहों सरणु पवज्जाइ (तडि) 1/1 (तडयड) व 3/1 अक (पड) व 3/1 अक (घण) 1/1 (गज्ज) व 3/1 अक (जाणई) 6/1 (राम) 6/1 (सरण) 2/1 (पवज्ज) व 3/1 सक बिजली (ने) तड़तड़ करती है (किय) पड़ती है (पड़ी) बादल गरजता है (गर्जा) जानकी (को) राम को शरण में (को) जाती है (गई) अमर-महाघणु-गहिय-कर [(अमर)-(महा) वि-(घणु)-(गहिय) भूकृ- इन्द्रधनुष को, पकड़े हुए, हाथ (कर) 1/1] मेह-गइन्दे [(मेह)-(गइन्द) 7/1] मेघरूपी हाथी पर चडेवि (चड+एवि) संकृ चढ़कर नस-लुद्ध [(जस)-(लुद्धअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक] यश का इच्छक उपरि अव्यय ऊपर गिम्म-गराहिवहो [(गिम्भ)-(णराहिव) 6/19 ग्रीष्मराजा के पाउस-राउ [(पाउस)-(राम) 1/1] पावसराना गाई=णाई अव्यय मानो सण्गद्ध (सण्णद्धअ) भूक 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक आक्रमण के लिए तैयार 28.2 पाउस-णरिन्दु गलगज्जिउ धूली-रउ বিল विसज्निउ अव्यय [(पाउस)-(णरिन्द) 1/1] [(गलगज्ज→गलगज्जिअ) भूकृ 1/1] [(धूली)-(रय→2)1/1] (गिम्म) 3/1 (विसज्ज) भूकृ 11 पावस-राजा गरजा धूल-बेग प्रीष्म द्वारा मेजा गया 1. 'गमन' अर्थ में द्वितीया का प्रयोग होता है। 2. रअ वेग 36 1 [ अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy