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________________ जिग्गह निग्रह परिसेसिउ सयलु परिग्गहु (णिग्गह) 11 (क) 3/1 स (परिसेस→परिसेसिअ) भूकृ 1/1 अनि (सयल) 1/1 वि (परिग्गह) 1/1 किसके द्वारा समाप्त किया गया सकल परिग्रह 9. को कोन वृक्ष के समीप/नीचे दुम-मूले बसा चसिउ वरिसालए को (क) 1/1 सवि [(दुम)-(मूल) 7/1] (वस→वसिअ) भूकृ 1/1 (वरिसालअ) 7/1 'अ' स्वार्थिक (क) 1/1स [(एक्क)+ (अंगें)] [एक्क) वि-- (अङ्ग) 3/1] (थिअ) भूकृ 1/1 अनि (सीयालअ) 7/1 वर्षाकाल में कौन केवलमात्र शरीर से थिउ सीयालए शीतकाल में 10. के उण्हालए किसके द्वारा ग्रीष्मकाल में किया गया शरीर का तपन अत्तावणु (क) 3/1 स (उण्हालअ) 7/1 (कि) भूक 1/1 (अत्त)+ (तावणु)] (अत्त)-(तावण) 1/11 (एअ) 1/1 सवि [(तव)-(चरण) 1/1] (हो) व 3/1 अक (भीसावण) 1/1 वि एउ तव-चरण होइ भोसावणु यह तप का आचरण होता है भोषण 11. भरह हे भरत मत बढ़कर वडिउ वोल्लि बोल सो अज्ज आज (भरह) 8/1 अव्यय (वड्ड+इउ) संकृ (वोल्ल) विधि 2/1 सक (तुम्ह) 1/1 स (त) 1/1 सवि अव्यय अव्यय (वाल) 1/1 (भुज) विधि 2/1 सक [(विसय)-(सुह) 2/2] (क) 1/1 सवि (पब्वज्जा ) 6/1 (काल) 1/1 वालु भुजहि विसय-सुहाई बालक भोग विषय सुखों को कौनसा प्रव्रज्या का काल को पवजहे काल अपभ्रंश काव्य सौरभ ] [ 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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