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________________ स्व-इच्छा से सजा प्रान स-इच्छए मण्डहि मज्ज बि वर-विलय अवरुण्डहि [(स) वि-(इच्छा ) 3/1] (मण्ड) विधि 2/1 सक अव्यय अव्यय [(वर) वि-(विलया) 2/2] (अवरुण्ड) विधि 2/1 सक श्रेष्ठ स्त्रियों को (का) प्रालिंगन कर प्रज्ज जोग्गउ सव्वाहरणहो आज भी योग्य सभी प्रकार के अव्यय अव्यय (जोग्गअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक [(सव्व)+ (आहरणहो)] [(सव्व) वि-(आहरण)6/1] अव्यय अव्यय (कवण) 1/1 स (काल) 1/1 [(तव)-(चरण) 6/1] भज्ज प्राज कवणु कालु तव चरणही कौनसा समय तप के प्राचरण का 6. जिरण-पव्वज अइ-दुसहिय [(जिण)-(पव्वज्जा ) 1/1] जिन-प्रव्रज्या (हो) व 3/1 अक होती है [(अइ) वि-(दुसह→दुसहिया)भूक 1/1] बहुत असह्य (क) 3/1 स किसके द्वारा (वावीस) 1/2 वि बाईस (परीसह) 1/2 परोषह (वि-सह→वि-सहिय) भूकृ 1/2 सहन किये गये बावीस परीसह विसहिय 7. के जिय चउ-कसाय-रिउ दुज्जय (क) 3/1 स (जिय) भूकृ 1/2 अनि [(चउ) वि-(कसाय)-(रिउ) 1/2] (दुज्जय) 1/2 वि (क) 3/1 स (आयाम→आयामिय) भूकृ 1/2 (पञ्च) 1/2 वि (महब्बय) 1/2 किसके द्वारा जीते गये चारों कषायोंरूपी शत्र दुर्जेय किसके द्वारा प्रहण किये गए पंच महावत प्रायामिय पञ्च महव्वय 8. के किउ पञ्चहुँ विसयहुँ (क) 3/1 स (कि→किअ) भूकृ 1/1 (पञ्च) 6/2 वि (विसय) 6/2 किसके द्वारा किया गया पांचों विषयों का 26 ] [ अपभ्रंश काय सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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