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________________ 1. स ज्जे तं जे 11. तं पच्छाणउ 22 घरु रयण ताई तं चित्तयम्मु स- लक्खणु णवर ण दोसs माए रामु ससीय - सलक्खण जं गोसरिउ राउ आणन्दे वुत्तु वेप्पण भरह गरिन्दें 2. हउ मि देव पई सहँ पव्वज्जामि दुग्गइ-गामिउ ] Jain Education International (त) 1 / 1सवि अव्यय (त) 1 / 1 सवि अव्यय ( पच्छाअ ) 1 / 1 वि 1 / 1 स (घर) 1/1 ( रयण) 1 / 2 (त) 1/2 सवि (त) 1 / 1 सवि (चित्तयम्म) 1 / 1 ( स - लक्खण) 1 / 1 वि अव्यय अव्यय ( दीसइ) व कर्म 3 / 1 सक अनि ( माअ ) 8 / 1 अनि (राम) 1 / 1 [ ( स सीयास सीय) - ( स लक्खण) 1 / 1] 24.3 अव्यय ( णीसरणीसरिअ ) भूकृ 1 / 1 ( राअ ) 1 / 1 ( आणन्द ) 3 / 1 (वृत्त) भूकृ 1 / 1 अनि ( णव + एप्पिणु) संकृ [ ( मरह) - ( णरिद ) 3 / 1] ( अम्ह) 1 / 1 स अव्यय (देव) 8 / 1 ( तुम्ह ) 3 / 1 स अव्यय वह For Private & Personal Use Only यह ढकनेवाली ( चादर ) ཙཱ་ 1ཐཱཀྑཱུ वह घर रत्न वे वह चित्र लक्ष्मणसहित केवल नहीं देखा जाता है (देखे जाते हैं ) हे माँ राम सीतासहित, लक्ष्मणसहित जब निकला राजा हर्ष से कहा गया प्रणाम करके भरत राजा के द्वारा मैं भी हे देव तुम्हारे साथ संन्यास लेता हूँ (लूँगा ) ( पव्वज्ज) व 1 / 1 सक [ ( दुग्गइ) - ( गामिअ ) 2 / 1 वि] दुर्गति देनेवाले [ अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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