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गिज्जद
लक्खणु मुरव वज्जे वाइज्जद लक्खणु
(गा+ इज्ज) व कम 3/1 सक (लक्खण) 1/1 [(मुरव)-(वज्ज) 7/1] (वाम) व कर्म 3/1 सक (लक्खण) 1/
गाया जाता है लक्ष्मण मृदंगवाध में बजाया जाता है लक्ष्मण
3. सुइ-सिद्धन्त-पुराणेहि
[(सुइ)-(सिद्धन्त)-(पुराण) 3/2]
लक्खणु प्रोङ्कारेण पढिज्जइ लक्हणु
(लक्खण) 1/1 (ओङ्कार) 3/1 (पढ) व कर्म 3/1 सक (लक्खण) 1/1
श्रुति, सिद्धान्त और पुराणों द्वारा लक्षण ओंकार से पढ़ा जाता है लक्षण
अण्णु
पावपूरक जो-जो
(अण्ण) 1/1 वि अव्यय (ज) 1/1 सवि (क) 1/1 दि (स-लक्ख ण) 1/1 वि [(लक्ख ण)-(णाम) 3/1] (वुच्चइ) व कर्म 3/1 सक अनि (लक्खण) 1/1
किपि स-लक्खणु लक्खरण-णामें
कुछ भी
लक्षणसहित लक्ष्मण नाम से कहा जाता है लक्षण
लक्खणु
कावि
पारि
सारङ्गि
(का) 1/1 सवि (णारी) 1/1 (सारङ्गी) 6/1 अव्यय (वुण्ण→वुण्णी) भूकृ 1/1 अनि (वड्ड-→वड्डी) 2/1 वि (धाह→धाहा) 2/1 (मुअ+एवि) संकृ (परुण्ण→परुण्णी) भूकृ 1/1 अनि
कोई नारी हरिणी के समान दुःखी हुई
बुक्की
धाह
मुएवि
चिल्लाहट छोड़कर (निकालकर)
परुण्णी
6.
का वि णारि
लेड पसाहणु
(का) 1/1 सवि (णारी) 1/1 (ज) 2/1 स (ले) व 3/1 सक (पसाहण) 2/1 (त) 2/1 स (उल्हा +आव) व प्रे. 3/1 सक
नारी जिस(को) लेती है (पहनती है) प्राभूषण को उसको शान्ति देता है।
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[ अपभ्रंश काव्य सौरम
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