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11. धम्मु विसुद्धउ तं जि पर जं किज्जइ काए । हवा तं धणु उज्जलउ जं श्रावइ पाएर ।। 12. अवरु वि जं जहि उवयरइ तं उवयारहि तित्थु । लइ जिय जीवियलाहडउ देहु म लेहु रित्थु ||
13. एक्कहिं इंदियमोक्कलउ पावइ दुक्खसयाइं । जसु पुणु पंच वि मोक्कला तसु पुच्छिज्जइ काई ॥
14. जइ इच्छहि संतोसु करि जिय सोक्खहं विउलाहं । ग्रह वा दुग को करइ रवि मेल्लिवि कमलाहं ॥ 15. मणुयत्तणु दुल्लहु लहिवि भोयहं पेरिउ जेरण । इंधर कज्जे कप्पयरु मूलहो खंडिउ तेरा ॥
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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