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पाठ-17
सावयधम्मदोहा
1. दुज्जणु सुहियउ होउ जगि सुयणु पयासिउ जेरण ।
अमिउ विसे वासरु तमिरण जिम मरगउ कच्चेण ॥
2. जिह समिलहि सायरगर्याहं दुल्लहु जूयहु रंधु ।
तिह जीवहं भवजलगयहं मणुयत्तरिण संबंधु ॥
3. मरणवयकाहि दय करहि जेम ण ढुक्कइ पाउ ।
उरि सण्णाहे बद्धइण अवसि ण लग्गइ घाउ ॥ 4. पसुधरणधण्णइं खेत्तियइं करि परिमाणपवित्ति ।
बलियई बहुयइं बंधणई दुक्करु तोडहुं जंति ॥ 5. भोगहं करहि पमाणु जिय इंदिय म करि सदप्प ।
हुंति रण भल्ला पोसिया दुद्धे काला सप्प ॥ 6 दाणु कुपत्तहं दोसडइ बोल्लिज्जइ रण हु भंति ।
पत्थरु पत्थरगाव कहिं दीसइ उत्तारंति ॥ 7. जइ गिहत्थु दारणेण विणु जगि परिणज्जइ कोइ ।
ता गिहत्थु पंखि वि हवइ जे घरु ताह वि होइ॥ 8. काइं बहुत्तई संपयई जइ किविणहं घरि होइ ।
उवहिणीरु खारें भरिउ पारिणउ पियइ रण कोइ ।। 9. पत्तहं दिण्णउ थोबडउ रे जिय होइ बहुत्तु ।
वडह बीउ धरणिहिं पडिउ वित्थरु लेइ महंतु ॥ 10 काई बहुत्तई जंपियइं जं अप्पहु पडिकूलु ।
काई मि परहु ण तं करहि एहु जि धम्महु मूलु ॥
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[ अपभ्रंश काव्य सौरम
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