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18. रण वि तुहं कारणु कज्जु ण वि ण वि सामिउरण विभिच्च ।
सूरउ कायरु जीव रण वि रण वि उत्तमु ण वि रिणच्च ॥
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19. पुण्णु वि पाउ वि कालु रगहु धम्मु अहम्मु रण काउ ।
एक्कु वि जीव ण होहि तुहं मिल्लिवि चेयणभाउ ।
20. रण वि गोरउ ण वि सामलउ रण वि तुहं एक्कु वि वण्णु ।
रण वि तणुअंगउ थूलु ण वि एहउ जाणि सवण्णु ॥
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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