________________
96 1
9. मोक्खु रण पावहि जीव तुहुं धणु परियणु चितंतु । तो इ विचितहि तउ जि तउ पावहि सुक्खु महंतु ॥
10. मूढा सयलु विकारिमउ मं फुडु तुहुं तुस कंडि । fears म्मिलि करहि रइ घरु परियण लहु छंडि ॥
11. विसयसुहा दुइ दिवहडा पुणु दुक्खहं परिवाडि । भुल्लउ जीव म वाहि तुहुं प्रप्पाखंधि कुहाडि ||
12. उव्वलि चोप्पड चिट्ठ करि देहि सुमिट्ठाहार । सयल विदेह रिपरत्थ गय जिह दुज्जणउवयार ॥
13. थिरेण थिरा मइलेरा णिम्मला रिगग्गुणेण गुणसारा । कारण जा विढप्पइसा किरिया किरण कायव्वा ||
14. अप्पा बुज्झिउ रिणच्चु जइ केवलरणासहाउ । ता पर किज्जइ काई वढ तणु उपरि प्रणुराउ || 15. जसु मरिण खाणु र विष्फुरइ कम्महं हेउ करंतु । सो मुरिण पावइ सुक्खु ण वि सयलई सत्थ मुणंतु ॥
16. बोहिविवज्जिउ जीव तुहुं विवरिउ तच्चु मुणेहि । कम्मविणिम्मिय भावडा ते श्रप्पारण भणेहि ॥
17. ण वि तुहुं पंडिउ मुक्खु ण वि ण वि ईसरु ण वि णीसु । रवि गुरु कोइ विसीसु रग वि सव्वई कम्मविसेसु ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
www.jainelibrary.org