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________________ पाठ-16 पाहुडदोहा 1. गुरु दिरणयरु गुरु हिमकरणु गुरु दीवउ गुरु देउ । अप्पापरहं परंपरहं जो दरिसावइ भेउ ॥ 2. अप्पायत्तउ जं जि सुहु तेरण जि करि संतोसु । परसुहु वढ चितहं हियइ रण फिट्टइ सोम् ॥ 3. प्राभुजंता विसयसह जे ए वि हियइ घरंति । ते सासयसुहु लहु लहहिं जिरणवर एम भरणंति ॥ 4. ण वि भुजंता विसय सुह हियडइ भाउ घरंति । सालिसित्थु जिम वप्पुडउ गर गरयहं रिणवडंति ।। 5. प्रायई अडवड वडवडइ पर रंजिज्जइ लोउ । मरणसुद्धई णिच्चलठियइं पाविज्जइ परलोउ ॥ 6. धंधई पडियउ सयलु जगु कम्मइं करइ प्रयाणु । मोक्खहं कारणु एक्कु खणु ण वि चिंतइ अप्पाणु ।। 7. अण्णु म जागहि अप्पणउ घर परियणु तणु इठ्ठ । कम्मायत्तउ कारिमउ प्रागमि जोइहिं सिठ्ठ । 8. जं दुक्खु वि तं सुक्खु किउ जं सुहु तं पि य दुक्खु । पइं जिह मोहहिं वसि गयई तेण ॥ पायउ मुक्खु ॥ 94 ] [ अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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