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________________ ३६ दे इस हेतुसे उन्होंने अपनी आँखोंमें मछलियों की चरबी का अंजन लगाया था, प्रशस्तिको प्रतिलिपि लेनेके लिए उन्होंने अपने पास मोम की स्लेटपाटी - - रक्खी थी, मोम की स्लेट द्वारा शिलालिपिकी प्रतिछाप बराबर आ सकती थी अर्थात् रबिंग ( Rubbing ) ठीक हो सकता था. इन मोम की स्लेटोंसे रबिंग करके उस रबिंग की नकल करनेके लिए दूसरी तेल लगी हुई पट्टिकाओं को भी वे साथ ले गए थे, क्यों कि लिए हुए रबिंग तेलकी उन पट्टिकाओं के ऊपर बराबर आ सकते थे. प्रबंधोक्त इस बातसे मालूम होता है कि सेतुके ऊपर जरूर कोई प्रशस्ति थी और उसके प्रणेता स्वयं हनुमान थे. प्रबंध में प्रशस्ति के खंडित पद्य भी दिए है. इनको मैं यहां नहीं उद्धृत करता. अधिक जिज्ञासु लोग इस बात को समझने के लिए प्रभावकचरित्र पृ० २३४ -- २३५ श्लो० १७१ से १८० तक देख लेवें. उन खंडित प्रशस्तिके पद्योंकी पूर्ति राजाको संतोष हो इस प्रकार अन्य कवि नहीं सर सके परंतु धनपाल कविने उन पद्योंकी समस्यापूर्ति करके राजा भोज को संतुष्ट किया था, इतना ही सूचन करनेके लिए यह उल्लेख इधर दिया गया है. १३ धनपालका छोटा भाई शोभनमुनि भी अच्छा कवि था, उसने 'शोभनस्तुति' नाम की स्तुतिमाला बनाइ है जो चौवीस तीर्थंकरों की स्तुतिरूप है तथा यमकालंकार युक्त गभीर अर्थ सहित है. उस स्तुति पर विवेचनरूप वृत्ति महाकवि धनपालने बनाई है. १४ धनपालने तिलकमंजरी नाम की जो कथा रची है उसमें बहुत से पुराने जैन तथा अजैन सब कवियों का सादर स्मरण किया है. सबसे पहिले भगवंत महावीर के प्रथम गणधर इन्द्रभूतिको सविनय याद किया है. बादमें महाकवि तथा आदिकवि वाल्मीकि ओर व्यास, प्रवरसेन, तरंगवतीके कर्ता पालिस (जैन), जीवदेव (जैन), कालिदास, बाण, माघ, भारवि, समरादित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001708
Book TitlePaia Lacchinammala
Original Sutra AuthorDhanpal Mahakavi
AuthorBechardas Doshi
PublisherR C H Barad & Co Mumbai
Publication Year1960
Total Pages204
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Dictionary
File Size9 MB
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