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________________ भी कहा जो उसको ठीक लगा. मैं तो बचपनसे ही सरल हूं और आपकी किसी भी प्रकारकी आज्ञा को माननेवाला हूं. आप मुझको कुएँमें डालें अथवा मारनेके लिए चांडालोंको सौंप दें- आपको जो ऊँचे सो करें. उसमें मैं किसी भी प्रकारका विचार नहीं करता. अतः अब आप चिंता को छोड दें, उठकर स्नान पूजन कर लें और भोजन करके स्वस्थ हो जावें. बादमें मुझको आचार्यके पास ले जाकर उनको भेटके रूपमें दे दें. फिर सर्वदेव ब्राह्मण अपने छोटे पुत्रको लेकर आचार्य के पास गया और शोभनको आचार्य के चरणों में भेंट किया. आचार्यने भी सर्वदेवकी संमति लेकर अच्छे दिवस मुहूर्त इत्यादिक को देखकर शोभनको अपना शिष्य बना लिया. धनपाल राजमान्य था अतः आचार्य को (अपभ्राजनशङ्किताः) शासनकी अपभ्राजना होने की शंका हुई. इस कारण आचार्यने अपने नए शिष्यको लेकर प्रातःकालमें ही धारानगरीसे अणहिल्लपुर की तरफ जाने के लिए विहार कर दिया. धनपालने तब देखा कि पिता सर्वदेवने निधान के लिए अपने छोटे भाई को बेच दिया है, अतः पिता अनुचित कर्म करनेवाले हैं. धनपालने पिता को अपने से पृथक् कर दिया और वह (धनपाल) गुस्से में आकर सोचने लगा कि जैनमुनियोंका मुंह देखने लायक नहीं है, ये कहां कहां से आकर संयम और शमके बहानेसे स्त्री तथा बालकों को ठग लेते हैं, दीक्षाधारी शूद्र हैं, इनका पाखंड बडा अद्भुत है. राजाको कह कर अब इस प्रदेश में इनका आना जाना रोक देना जरूरी है. धनपालने जैनमुनियों पर कोपाविष्ट होकर 'जैनमुनि बनकर शोभन चला गया' इत्यादि जो वात बनी थी राजा भोज को कह दी. तब राजा भोजने अपने राज्यमें बारह वर्ष तक जैनमुनियों का आनाजाना निषिद्ध घोषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001708
Book TitlePaia Lacchinammala
Original Sutra AuthorDhanpal Mahakavi
AuthorBechardas Doshi
PublisherR C H Barad & Co Mumbai
Publication Year1960
Total Pages204
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Dictionary
File Size9 MB
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