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________________ जैसे आज्ञांकित पुत्र के होने पर भी आप चिंतित क्यों हैं ? अपने विषादका कारण बताइए. पिताने धननिधिकी तथा उसके संकेत वगैरह की सब बात बता दी और कहा कि धननिधिको बतानेवाले जैनाचार्य तुम दो भाइयोमें से एक भाईको मांग रहे हैं और मैंने ऐसा उनको वचन भी दे दिया है. तो हे पुत्र ! अब तुम मुझको ऋणमुक्त कर दो. पिताके इस वचनको सुनकर धनपालको बडा गुस्सा आया और उसने बाप को थोडा डांटा भी. धनपालने कहा कि हम लोग संकाश्यके रहनेवाले तथा चारों वेदों को जाननेवाले उत्तम ब्राह्मण हैं. मैं राजा भोज का बालमित्र हूं और बडा प्रतिष्ठित ब्राह्मण हूं. ये जैनमुनि पतित शूद्रों के समान हैं, उनकी ऐसी निंदित प्रतिज्ञा के खातिर मैं अपने पूर्वजों को नरकमें डालना नहीं चाहता. आपका यह कुव्यवहार है और सज्जनोंसे निंदनीय है अतः मैं आपके कथनानुसार नहीं कर सकता. आप जानें व आपकी प्रतिज्ञा जाने. इस प्रकार पिताका अपमान करके धनपाल वहांसे अन्य जगह चला गया और पिता सर्वदेव निराश हो गया तथा उसकी आंखोंसे आंसू टपकने लगे. इतने में धनपालका छोटा भाई शोभन वहां आ गया. पिताने उसको जो बातें धनपालसे हुई थी सब कह दी और धनपालका डांटना भी सुना दिया. और अंतमें कहा कि तुम तो अभी बालक हो अतः हमारी किसी प्रकारकी सहायता नहीं कर सकते. तो तुम जाओ और हम अपना किया आप ही भुगत लेंगे. तब शोभनने अपने पितासे कहा कि आप मत घबड़ाइए, मैं जरूर आपका वचन पालूंगा. मेरा बड़ा भाई राजमान्य है, कुटुंब के सारे भार को उठाने को भी वह समर्थ है, वह बडा पंडित भी है अतः उसने आपको कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001708
Book TitlePaia Lacchinammala
Original Sutra AuthorDhanpal Mahakavi
AuthorBechardas Doshi
PublisherR C H Barad & Co Mumbai
Publication Year1960
Total Pages204
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Dictionary
File Size9 MB
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