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________________ २८ अलंकारदप्पण विगुणो जहा (द्विगुणं यथा) हंस-ससि-कमल-कुवलय-भसल-मुणालाण णिज्जिआ लच्छी । तिस्सा गइ-मुह-करअल-लोअण-धम्मेल्ल-बाहाहिं ।। ६८।। हंसशशिकमलकुवलयभ्रमरमृणालानां निर्जिता लक्ष्मीः । तस्या गतिमुखकरतललोचनधम्मिल्लबाहाभिः ।।६८।। उस (नायिका) की गति, मुख, करतल, नेत्र, केशपाश और बाहुओं ने क्रमश: हंस, चन्द्र, कमल, नीलकमल, भ्रमर और कमलनाल की शोभा को जीत लिया। यहाँ पर उत्तरार्ध में कथित गति मुख इत्यादि पदार्थों का पूर्वार्ध में कथित हंस चन्द्र आदि पदार्थो के साथ क्रमानुसार सम्बन्ध होने से यथासंख्य अलंकार है। तउणो जहा (त्रिगुणो यथा) जो वहइ विमल-वेल्लहल-कसण-सिअ-सरिसिआ-विसमियंको । मुद्धद्ध-रयणीअर-मउलिसंसिअं तं सिवं णवह ।।६९।। यो वहति विमल विल्वफलं (सुन्दरं) कृष्णसितसरीसृपविषमृगाङ्कान् । मूर्धाधरजनीकरमौलिसंश्रितं' तं शिवं नमत ।।६९।। जो निर्मल विल्वफल को तथा (यथाक्रम) काले और सफेद सर्प, विष तथा चन्द्र को धारण करता है उस मूर्धास्थित अर्धचन्द्र रूपी मुकुट वाले शंकर को प्रणाम करो। यहाँ पर 'कृष्ण' का सर्प एवं विष के साथ और 'सित' का मृगाङ्क के साथ क्रमश: अन्वय होने से यथासंख्य अलंकार है । चउग्गुणो जहा (चतुर्गुणो यथा) तीए सममउअ-दीहेहिं णिम्मलाऽऽतंब धवल-सोहेहिं । डसणाहर-णयणेहिं जिआइं मणिजवय-कमलाई ।।७।। तस्याः सममूदकदीर्घ निर्मलाताम्रधवल-शोभैः । दशनाधरनयनैर्जितानि मणियावककमलानि ।।७०।। उस (नायिका) के समतल कोमल और दीर्घ, निर्मल ताम्र और धवल शोभावाले दन्त, अधर और नेत्रों ने मणि, लाख (जतु) और कमलों को जीत लिया। यहाँ पर सम, मृदुक, दीर्घ का निर्मल, ताम्र, धवल के साथ तथा दन्त, अधर, नेत्र का तथा मणि, यावक, कमल का यथाक्रम अन्वय होने से यथासंख्य अलंकार है। चारों चरणों में तीन तीन पदार्थों का अन्वय होने से चतुर्गुण यथासंख्य है। द्विगुण यथासंख्य में पदार्थ समूहद्वय का अन्वय है तथा त्रिगुण यथासंख्य में पदार्थत्रय का अन्वय है । .. १. मौलि-"मौलि: संयतकेशेषु चूडामुकुटयोस्तथा ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001707
Book TitleAlankardappan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages82
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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