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५३. पुष्पचूला की कया
पुष्पभद्र नगर में पुष्पकेतु राजा और पुष्पवती रानी के जुड़वे पुत्र पुष्पचूल और पुत्री पुष्पचूला थे । दोनों के परस्पर अतिस्नेह के कारण राजा ने दोनों का एक दूसरे से विवाह करने का निर्णय लिया । रहस्यमय प्रश्न पूछ कर छल में उन्होंने नगरवासियों का भी समर्थन प्राप्त कर लिया और उन दोनों भाई-बहनों का विवाहसम्बन्ध कर दिया १८ । यह अयोग्य कार्य देखकर दोनों की माता पुष्पवती विरक्त हुई
और कठोर तपस्या के फलस्वरूप मरकर देव बनी । पिता भी परलोक सिधार गये। अत: पुष्पचूल राजा और पुष्पचूला पटरानी बनकर आनन्द करने लगे । एक बार देवरूपी पुष्पवती के जीव ने पुत्र पुत्री को नरकगति से बचाने के लिए प्रतिबोध देने आयी । उसने पुत्री को रात को स्वप्न में नरक दुःख बताये । दूसरे दिन पुष्पचूला ने आचार्य से नारकीय दु:ख का स्वरूप और कारण जानकर घर वापस आई । फिर देवरूप पुष्पचूला की माँ ने उसे स्वर्ग का सुख बताया । पुष्पचूला ने उसका भी विधिवत् ज्ञान आचार्य से प्राप्त किया१९ । इससे पुष्पचूला को वैराग्य उत्पन्न हुआ । राजा ने उसे दीक्षा लेकर घर पर रहने का आग्रह किया । वह आचार्य अर्णिकापुत्र से दीक्षा लेकर शुद्ध चारित्राराधन करने लगी२० । भावी बारह वर्षीय दुष्काल से अवगत होकर आचार्य अर्णिकापुत्र सभी साधुओं को अलग दिशा में भेज कर असमर्थ होने के कारण स्वयं वहीं रहने लगे । पुष्पचूला उनकी विधिवत् सेवा करती थी । इस प्रकार उसको केवलज्ञान प्राप्त हुआ । एक बार बरसात में वह आहार लेकर आयी । आचार्य ने उसे अनुचित बताया। पुष्पचूला ने कहा – यह मेघवृष्टि अचित्त है । इस पर आचार्य उसे केवलज्ञानी समझकर पश्चात्ताप एवं क्षमायाचना करने लगे । साध्वी ने उनसे कहा कि आप भी गंगा नदी पार करते समय केवलीज्ञानी होंगे । आचार्य यह सुनकर गंगा के किनारे नाव में बैठे । उनका पूर्वजन्म का वैरी नाव डूबोने लगा। इससे भयभीत होकर नाव में बैठे अन्य लोगों ने आचार्य को ही नदी में फेंक दिया। देव ने उनके शरीर के नीचे त्रिशूल लगा दिया । विद्ध शरीर के खून से जलजन्तुओं की विराधना हो रही है । इस प्रकार पश्चात्ताप करते-करते वे केवली होकर मोक्ष को प्राप्त हुए । इस पर यह अफवाह फैली कि गंगा में स्नान करने पर मोक्ष होता है । वह स्थान प्रयागतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । ५४. अनिका पुत्र की कथा उत्तर मथुरा नगरी में कामदेव और देवदत्त दो व्यापारी मित्र रहते थे । एक
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