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________________ इन सभी संस्करणों को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि मूल पाठ में कहींकहीं पर व्याकरण, छन्द की या दोनों की त्रुटियाँ हैं । इसलिए उपदेशमाला के समीक्षात्मक सम्पादन की आवश्यकता प्रतीत हुई । इस शोधप्रबन्ध के प्रणयन में मैं सर्वप्रथम अपने परम पूज्य गुरु डॉ. के. आर. चन्द्रा (रीडर एवं विभागाध्यक्ष, प्राकृत पालि विभाग । गुजरात युनिवर्सिटी, अहमदाबाद एवं मन्त्री, प्राकृत जैनविद्या विकास फण्ड, अहमदाबाद ।) के प्रति श्रद्धावनत हूँ जिन्होंने इस महत्त्वपूर्ण कार्य को पूर्ण करने में न केवल सस्नेह मार्गदर्शन दिया वरन् एक अभिभावक के रूप में भी अपनी अच्छी भूमिका निभायी, उन्होंने अपनी संस्था से आर्थिक सहायता, उचित सलाह एवं प्रोत्साहन देकर मेरा उत्साहवर्धन किया । अत: मै पुन: श्रद्धेय गुरुवर के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता अर्पित करता हूँ। मैं परमादरणीय विद्वद्धर्य पं० दलसुखभाई मालवणिया और डॉ. हरिवल्लभ चू. भायाणी के प्रति नतमस्तक हूँ जो मेरे लिए सतत स्नेहपूर्ण उचित मार्गदर्शन, साहस एवं प्रेरणा के स्रोत रहे । मैं डॉ. रमणिक शाह (व्याख्याता, प्राकृत पालि विभाग, गुजरात युनिवर्सिटी एवं मन्त्री, प्राकृत विद्यामण्डल, अहमदाबाद) के प्रति हार्दिक कृतज्ञ हूँ जो मेरे एम.ए. और इस पीएच.डी. के लिए अपनी संस्था से छात्रवृत्तियाँ अविलम्ब स्वीकृत करते रहे और मेरा उत्साहवर्धन करते रहे । आवश्यकतानुसार उन्होंने मुझे मार्गदर्शन भी दिया । मैं श्री चन्द्रकान्तभाई कडिया (गृहपति, कस्तूरभाई लालभाई बोर्डिंग हाउस, नवरंगपुरा, अहमदाबाद) के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ, जिनके द्वारा स्वीकृत की गयी छात्रवृत्ति पर ही मेरा पूरा शोध-कार्य निर्भर रहा । श्री बख्तावरमल जी बालर (अध्यक्ष, प्राकृत जैन विद्या विकास फण्ड) के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ, जिनका सहयोग और प्रोत्साहन मुझे प्राप्त होता रहा है । पाटण श्री कानजीभाई पटेल (आचार्य, साइंस, आर्ट्स एण्ड कामर्स कॉलेज, पाटण), श्री अशोकभाई शाह (व्याख्याता, प्राकृत विभाग, आर्ट्स कॉलेज, पाटण एवं ट्रस्टी, श्री हेमचन्द्राचार्य ज्ञानभण्डार, पाटण) को मैं अपनी कृतज्ञता अर्पित करता हैं जिनके संयुक्त सहयोग से मैं उपरोक्त ज्ञान भण्डार की उपदेशमाला की ताड़पत्रीय हस्तप्रतों के पाठान्तर ले सका । परमपूज्य मुनि श्री शीलचन्द्र विजय जी महाराज के प्रति आभार व्यक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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