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________________ विसएसु (विषयेभ्यः) २०४ हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण में इस व्यत्यय का भी उल्लेख नहीं है । क्रियापद सामान्यतया वर्तमानकाल परस्मैपद अन्य पुरुष एकवचन के लिए -इ प्रत्यय पाया जाता है लेकिन अपवादरूप कुछ अन्य प्रत्यय भी प्राप्त होते हैं, यथा ए - भंजए - भनक्ति (२९४) | निच्छए - नेच्छति (३२५) सोहए - शोधयति (३६०) आत्मनेपद के लिए -ए प्रत्यय के अतिरिक्त -इ प्रत्यय भी प्रयुक्त हुआ है, यथा ए = बुज्झए - बुध्यते (३१) इ = अभिरमइ - अभिरमते (३६६) सहति - सहते (६५) कर्मणि प्रयोग के कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैंए = तीरए - तीर्यते (५११) अणुगम्मए - अनुगम्यते (१३) इ - तीरइ - शक्यते (१८९, ३२२) वर्तमानकाल परस्मैपद और आत्मनेपद के मध्यम पुरुष के एकवचन में -सि प्रत्यय ही प्राय: प्रयुक्त हुआ है । आत्मनेपद में उसका -से प्रत्यय केवल एकबार प्रयुक्त हुआ है, यथा – बुज्झसे - बुध्यसे (२०८) ___ उत्तम पुरुष में -मि प्रत्यय प्रयुक्त है । अस्मि जब सन्धियुक्त हो तो उसके लिए -मि और -म्हि प्राप्त होते हैं, यथामि सुट्ठिओमि - सुस्थितोऽस्मि (३८५) ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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