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________________ - स्स विभक्ति- सिवगस्स (शिवकाय) २६५ पुत्तस्स (पुत्राय) १४५ बहुवचन में - ण विभक्ति - जईण (यतीभ्य:) २३८ । सामान्यतया महाराष्ट्री में चतुर्थी विभक्ति के लिए षष्ठी विभक्ति का ही प्रत्यय प्रयुक्त होता है लेकिन उपदेशमाला में प्रयुक्त -आए प्रत्यय उस पर अर्धमागधी के प्रभाव को सूचित करता है । उसकी भाषा को जैन महाराष्ट्री कहना अधिक समीचीन होगा । पंचमी विभक्ति अकारान्त एकवचन के लिए - आओ विभक्ति सामान्यतया प्राप्त होती है। -आउ प्रत्यय, जो कि क्वचित् है, का उदाहरण द्रष्टव्य है - सलिलाउ (सलिलात्) २० । आ विभिक्ति भी प्राय: प्रयुक्त है । बला (बलात्) २२४, ४४८ - आएसा (आदेशात्) ५०५ सामन्ना (श्रामण्यात्) २५२ इत्यादि । षष्ठी विभक्ति पुं० नपुं॰ के अकारान्त शब्दों के अतिरिक्त उकारान्त एवं व्यंजनान्त शब्दों के लिए भी -स्स विभक्ति के प्रयोग १३ बार मिलते हैं - स्वरान्त - साहुस्स (साधो:) ४७० व्यंजनान्त - विउस्स (विदो:) ३३९ गिहिस्स (गृहिण:) ३५२ सप्तमी विभक्ति पुंलिंग नपुंसकलिंग (स्वरान्त या व्यंजनान्त) शब्दों के एकवचन में प्राय: - ए और -म्मि विभिक्ति का प्रयोग प्राप्त होता है । कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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