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सं० पा०
संस्करण
१. सिद्धर्षि.
२. शाह कुं०
स्पष्टीकरण
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जह ते संगमथेरा सपाडिहेरा तया आसि ।
पाठ अभिप्रेत है जब
गाथा नं. १०३ के पहले पाद में - " गइगमण " कि संस्करण नं. ४ में - " गइमण" पाठ है जो गलत है । " पडिहत्था " पाठ संस्करण नं. १ में और " पडिहथ्थए” पाठ संस्करण नं. २ में मिलता है जो भाषाकीय दृष्टि से गलत है । संस्करण नं. में "रन्ना" के बदले में "रणा" है, संस्करण नं. ५,६ और ८ में . "रण्णा" है और ७ में " रन्नो" है । इनमें "रणा" और "रन्नो” बिल्कुल गलत हैं क्योंकि इनका अर्थ के साथ तालमेल नहीं बैठता है ।
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११० ब
इसी गाथा के दूसरे पाद में संस्करण नं. ७ में "तं" शब्द नहीं है जिससे छन्द और अर्थ बाधित होता है । संस्करण नं. ५, ६ और ८ में आयरिअ शब्द मिलता है । इसमें अन्तिम वर्ण में "य" श्रुति का अभाव है ।
आसी आसी
गाथा नं. १०४ के पहले पाद में धम्ममइएहिं अइसुंदरेहिं पाठ संस्करण नं. १,२,३,४,६,७ और ८ में मिलता है इससे गाथा छन्द के लिए अपेक्षित मात्राओं से कुछ अधिक मात्राएँ हो जाती हैं । संस्करण नं. ५ में दोनों अनुस्वारों को अनुनासिक में बदलकर इसका परिहार किया गया है । संस्करण ४ में " गुणोवणिएहिं" पाठ मिलता है जो भाषा और छन्द दोनों दृष्टियों से गलत है ।
इसी गाथा के दूसरे पाद में "पल्हायंतो " शब्द के लिए संस्करण नं १ “पल्लायंतो' शब्द प्राप्त होता है जिसका कोई अर्थ नहीं बैठता । संस्करण नं. ४ में "य" के बदले "ए" पाठ मिलता है और "पल्हायंतो " से जोड दिया गया है जिसके कारण उसका कोई अर्थ नहीं स्पष्ट हो रहा है । इसी पाद में "चोएई" पाठ संस्करण नं. ३, ५ और ६ में मिलता है । इससे छन्द बाधित होता है । संस्करण नं. २ का " आयरिउ" पाठ भाषा को छिन्न करता है ।
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