SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जलाकर छेद कर दिया । सुदर्शना बोली - मेरी चादर क्यों जला डाली । इस प्रकार ढंक ने कहा - चादर कहाँ जली । अभी तो बाकी है जैसा कि आपका सिद्धान्त है । आप तो महावीर के ही सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर रही हैं । सुदर्शना इससे प्रभावित हुई और जमाली का साथ छोड़कर महावीर के पास गयी और शुद्ध चारित्रपालन करके केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष पायी । जमाली मिथ्या प्ररूपणा करके १५ दिन तक कष्टमय अनशन करके मरकर नीची जाति का देव बना३५ । वहाँ से वह विविध योनियों में भटकता रहेगा । ७०. अंगसंगोपनकर्ता कछुए का दृष्टान्त वाराणसी नगरी में गंगा नदी के पास मृदगंग नामक सरोवर था । वहीं एक मालुयाकच्छ नामक जंगल भी था। उसमें दो दुष्ट गीदड़ रहते थे। एक दिन सरोवर से दो कछुए बाहर निकले । वे गीदड़ उन्हें मारने के लिए झपटे लेकिन कछुओं ने अपने अंग छिपा दिये । गीदड़ बहुत प्रयत्न किये लेकिन असफल होकर नजदीक कहीं छीपकर बैठ गये । थोड़ी देर बाद एक कछुआ इस विचार से अपना सिर बाहर निकाला कि गीदड़ कहीं दूर गये होंगे । तब तक दुष्ट गीदड़ों ने उसकी गरदन पकड़ ली और नोच-नोच कर खा गये । वे गीदड़ दूसरे कछुए को मारने का बहुत प्रयत्न किये लेकिन असफल होकर दूर चले गये । दूसरा कछुआ उनको दूर गया जानकर बहुत देर के बाद अपनी गरदन थोड़ी-थोड़ी बाहर निकाली और निश्चिन्त होकर तेज भागा और सरोवर में अपने परिवार से जा मिला३६ । उपसंहार उपदेशमाला के विषय में किये गये अध्ययन का सार इस प्रकार है - ग्रन्थ के समीक्षात्मक सम्पादन के लिए आठ (सात ताडपत्र और एक कागज की) हस्तप्रतों का उपयोग किया गया प्रकाशित संस्करणों के आधार पर ग्रन्थ के समीक्षात्मक सम्पादन की आवश्यकता सिद्ध की गई। इसमें कुल ५४० गाथाएँ ही मौलिक हैं। इसकी भाषा महाराष्ट्री है जो अंशत: अर्धमागधी से प्रभावित है । इसमें छ: पद्यों को छोड़कर शेष सभी पद्य गाथा छन्द में हैं । छ: पद्यों में से चार अनुष्टुप छन्द में, एक रथोद्धता और एक विपरीत आख्यानकी छन्द में है । उपदेशमाला का समय पाँचवीं से नौवीं सदी के बीच ठहरता है । १०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy