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६०. नन्दीषेणमुनि
नन्दीषेण के पूर्वजन्म का संक्षिप्त वृत्तात-किसी गाँव का मुखप्रिय नामक ब्राह्मण एक लाख ब्राह्मणों को भोजन कराने के संकल्प से घर का कामकाज करने के लिए भीम नामक अपने पड़ोसी को नियुक्त किया'२७ । वह पूर्व शर्त के अनुसार ब्राह्मण के खाने से बचे हुए भोजन को साधु साध्वियों को दे देता था । इस पुण्य से वह मरकर देव बना और वहाँ से राजगृह नगर में राजा का नन्दीषेण नामक पुत्र हुआ । इधर ब्राह्मण का जीव अनेक भवों को पार करके किसी अटवी में हथिनी की कुक्षि में पैदा हुआ । हथिनियों का स्वामी यूथपति हथिनियों से जन्मे हुए (हाथी) बच्चों को मार डालता था । अत: एक हथिनी अपने बच्चे को बचाने के लिए झूठमूठ में लंगड़ाकर चलने लगी और टोले में कम रहती थी । प्रसव काल के समय उसने एक तापस आश्रम में शिशु हाथी को जन्म दिया । उसक नाम सेचनक रखा । वे तापस उसका पालन-पोषण करने लगे । हथिनी समय पाकर उसे स्तनपान करा जाती थी। इस प्रकार वह जवान हो गया । एक दिन यूथपति हाथी को उसने मूठभेड़ में मारकर स्वयं यूथपति बन बैठा । उसने सोचा जिस प्रकार मैं उस हाथी को मारकर यूथपति बना हूँ उसी प्रकार दूसरा कोई हाथी भी मुझे मारकर यूथपति बनेगा । अत: वह इस झंझट से छुटकारा पाने के लिए आश्रम की तमाम झोपड़ियों को नुकसान पहुँचाया जिससे त्रस्त होकर तापस राजा के पास गये । राजा ने सचेनक हाथी को पकड़वाने का बहुत प्रयास किया लेकिन असफल रहा । इतने में नन्दीषेण वहाँ आया । नन्दीषण ने ज्यों ही सम्बोधित करके उसकी तरफ देखा त्यों ही उसे अवधिज्ञान से पूर्वजन्म का ज्ञान हुआ और वह शान्त हो गया । नन्दीषेण उस पर बैठकर घर आया । जवान होकर नन्दीषेण पाँच सौ कन्याओं से शादी कर सुखपूर्वक रहने लगा । एक दिन महावीर स्वामी से उसने अपने प्रति सचेनक हाथी के स्नेह का कारण पूछा । उसने उनसे पूर्वजन्म की सारी घटना जानकर मुनि दीक्षा ग्रहण करने के लिए कहा । भगवान् ने केवलज्ञान से उसका भविष्य देखकर कहा - अभी तुम्हें निकाचित कर्मों का फल भोगना बाकी है उसी समय आकाशवाणी हुई, परन्तु नन्दीषेण कृतसंकल्प था । उसने मुनि दीक्षा लेकर तपस्या करने लगा २८ । एक दिन उसने काम से अपने महाव्रतों को बचाने के लिए आत्महत्या करने के लिए फंदा गले में डालने का प्रयास किया लेकिन शासनदेवी ने उसे विफल कर दिया । फिर वह पहाड़ से गिरा मगर शासनदेव ने उसे
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