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________________ अर्धमागधी जैनागम ने मथुरा में एक संघ-सम्मेलन कराया, जिसमें पुनः आगम साहित्य को व्यवस्थित करने का प्रयत्न किया गया । इसी समय के लगभग वलभी में नागार्जुन सूरि ने भी एक मुनि सम्मेलन द्वारा आगम रक्षा का प्रयत्न किया । किन्तु इन तीन पाटलिपुत्री, माथूरी और प्रथम वल्लभी वाचनाओं के पाठ उपलभ्य नहीं। केवल साहित्य में यत्र-तत्र उनके उल्लेख मात्र पाये जाते हैं। अन्त में महावीर निर्माण के लगभग ६८० वर्ष पश्चात् वलभी में देवद्धिगणि क्षमाश्रमण द्वारा जो मुनि-सम्मेलन किया गया उसमें कोई ४५-४६ ग्रंथों का संकलन हुआ, और ये ग्रंथ आज तक सुप्रचलित हैं। यह उपलभ्य आगम साहित्य निम्नप्रकार है अर्धमागधी जैनागम (श्रु तांग-११) १-आचारांग (आयारंग)-इस ग्रन्थ में अपने नामानुसार मुनि-आचार का वर्णन किया गया है । इसके दो श्रु तस्कंध है । प्रत्येक श्रु तस्कंध अध्ययनों में और प्रत्येक अध्ययन उद्देशकों या चूलिकाओं में विभाजित है। इस प्रकार श्रु त प्रथम स्कंध में ६ अध्ययन व ४४ उद्देशक हैं; एवं द्वितीय श्रु तस्कंध में तीन चूलिकाएँ हैं, जो १६ अध्ययनों में विभाजित हैं। इस प्रकार द्वितीय श्रुतस्कंध प्रथम की चूलिका रूप है । भाषा शैली तथा विषय की दृष्टि से स्पष्टतः प्रथम श्रुतस्कंध अधिक प्राचीन है। इसकी अधिकांश रचना गद्यात्मक है, पद्य बीच बीच में कहीं कहीं आ जाते हैं । अर्द्धमागधी-प्राकृत भाषा का स्वरूप समझने के लिए यह रचना बड़ी महत्त्वपूर्ण है। सातवें अध्ययन का नाम महापरिज्ञा तो निर्दिष्ट किया गया है, किन्तु उसका पाठ उपलभ्य नहीं है। उपधान नामक नवमें अध्ययन में महावीर की तपस्या का बड़ा मार्मिक वर्णन पाया जाता है। यहाँ उनके लाढ, वज्रभूमि और शुभ्रभूमि में विहार और नाना प्रकार के घोर उपसर्ग सहन करने का उल्लेख आया है । द्वितीय श्रु तस्कंध में श्रमण के लिए भिक्षा मांगने, आहार-पान-शुद्धि, शय्या-संस्तरण-ग्रहण, विहार, चातुर्मास, भाषा, वस्त्र पात्रादि उपकरण, मल-मूत्र-त्याग एवं व्रतों व तत्सम्बन्धी भावनाओं के स्वरूपों व नियमोपनियमों का वर्णन हुआ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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