________________
जैन चित्रकला
३७३
बीच हुए शास्त्रार्थ सम्बन्धी नाना घटनाओं का चित्रण किया गया है। श्री साराभाई नवाब के संग्रह में एक १२ वीं शती का काष्ठ-पट ३० इंच लम्बा तथा पौने तीन इंच चौड़ा है, जिसमें भरत और बाहुबलि के युद्ध का विवरण चित्रित है । इसमें हाथी, हंस, सिंह, कमलपुष्प आदि के चित्र बहुत सुन्दर बने हैं । वि० सं० १४५६ में लिखित सूत्रकृतांगवृत्ति की ताड़पत्रीय प्रति का काष्ठपट साड़े चौंतीस इंच चौड़ा महावीर की घटनाओं से चित्रित पाया गया है । इसी प्रकार सं० १४२५ में लिखित धर्मोपदेशमाला का काष्ठ-पट सवा पैतींस इंच लंबा और सवातीन इंच चौड़ा है, और उस पर पार्श्वनाथ की जीवन-घटनाएं चित्रित हैं । ये सभी काष्ठ-चित्र सामान्यतः उसी पश्चिमी शैली के हैं, जिसका ऊपर परिचय दिया जा चुका है।
वस्त्र पर चित्रकारी--
वस्त्र पर बनाने की कला भारतवर्ष में बड़ी प्राचीन है। पालि ग्रंथों व जैन आगमों में इसके अनेक उल्लेख मिलते हैं। महावीर का शिष्य, और पश्चात् विरोधी भरवलि गोशाल का पिता, व दीक्षित होने से पूर्व स्वयं गोशाल चित्रपट दिखाकर जीविका चलाया करते थे । किन्तु वस्त्र बहुत नश्वर द्रव्य है, और इसलिए स्वभावतः इसके बहुत प्राचीन उदाहरण उपलब्ध नहीं हैं। फिर भी १४ वीं शती के आगे के अनेक सचित्र जैन वस्त्र-पट पाये जाते हैं । एक चिन्तामरिण नामक वस्त्र-पट साढ़े उन्नीस इंच लम्बा तथा साढ़े सतरह इंच चौड़ा वि० सं० १४११ (ई. १३५४) का बना बीकानेर निवासी श्री अगरचद्र नाहटा के संग्रह में है। इसमें पद्मासन पार्श्वनाथ, उनके यक्ष-यक्षिणी धरणेन्द्रपद्मावती तथा चौरी-वाहकों का चित्रण है। ऊपर की ओर पार्श्वयक्ष और वैरोट्या-देवी तथा दो गंधर्व भी बने हुए हैं। नीचे तरुणप्रभाचार्य और उनके दो शिष्यों के चित्र हैं। ऐसा ही एक मंत्र-पट श्री साराभाई नवाब के संग्रह में हैं, जिसमें महावीर के प्रधान गणधर गौतम स्वामी कमलासन पर विराजमान हैं, और उनके दोनों ओर मुनि स्थित हैं। मण्डल के बाहर अश्वारूढ़ काली तथा भैरव एवं धरणेन्द्र और पद्मावती के भी चित्र हैं। यह चित्रपट भावदेव सूरि के लिए वि० सं० १४१२ में बनाया गया था। एक जन वस्त्र-पट डा० कुमारस्वामि के संग्रह में भी है, जो उनके मतानुसार १६ वीं शती का, किन्तु डा० मोतीचन्द्र जी के मतानुसार १५ वीं शती के प्रारम्भ का है । पट के वामपावं में पार्श्वनाथ के समवसरण की रचना है । इसके आजू-बाजू यक्षयक्षिणियों के अतिरिक्त ओंकार की पांच आकृतियां, चन्द्रकला की आकृति पर आसीन सम्भवतः पांच सित, तथा सुधर्मास्वामी और नवग्रहों के चित्र हैं । पट
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org