________________
३६४
जैन कला
बलों का रंग मटियाला हैं । विद्वानों का अनुमान है कि ये चित्र तीर्थकर के समवसरण को खातिका-भूमि के है, जिनमें भव्य-जन पूजा-निमित्त कमल तोड़ते हैं।
इसी चित्र का अनुकरण एलोरा के कैलाशनाथ मन्दिर के एक चित्र में भी पाया जाता है । यद्यपि यह मन्दिर शव है, तथापि इसमें उक्त चित्र के अतिरिक्त एक ऐसा भी चित्र है जिसमें एक दिगम्बर मुनि को पालकी में बैठाकर यात्रा निकाली जा रही है । पालकी को चार मनुष्य पीछे की ओर व आगे एक मनुष्य धारण किये हैं। पालकी पर छत्र भी लगा हुआ है। आगे-आगे पांच योद्धा भालों और ढालों से सुसज्जित चल रहे हैं इन योद्धाओं की मुखाकृति, केशविन्यास भौंहें, आंखों व मूछों की बनावट तथा कर्ण-कुण्डल बड़ी सजीवता को लिए हुए हैं । बांयी ओर इनके स्वागत के लिये आती हुई सात स्त्रियां, और उनके आगे उसी प्रकार से सुसज्जित सात योद्धा दिखाई देते हैं । योद्धाओं के पीछे ऊपर की ओर छत्र भी लगा हुआ है। स्त्रियां सिरों पर कलश आदि मंगल द्रव्य धारण किये हुए हैं। उनकी साड़ी की पहनावट दक्षिणी ढंग की सकक्ष है, तथा उत्तरीय दाहिनी बाजू से बाँये कंधे पर डाला हुआ है। उसके पीछे बंदनवार बने हुए दिखाई देते हैं। इस प्रकार यह दृश्य भट्टारक सम्प्रदाय के जैनमुनि के राजद्वार पर स्वागत का प्रतीत होता है । डा० मोतीचन्दजी का अनुमान है कि एक हिंदू मन्दिर में इस जैन दृश्य का अस्तित्व २२ वीं शती में मन्दिर के जैनियों द्वारा बलात् स्वाधीन किये जाने की सम्भावना को सूचित करता है। किन्तु समस्त जैनधर्म के इतिहास को देखते हुए यह बात असम्भव सी प्रतीत है । यह चित्र सम्भवतः चित्र निर्मापक की धार्मिक उदारता अथवा उसपर किसी जैन मुनि के विशेष प्रभाव का प्रतीक है। एलोरा के इन्द्रसमा नामक शैलमन्दिर (८ वीं से २० वीं शती ई०) में भी रंगीन भित्तिचित्रों के चिह्न विद्यमान हैं, किन्तु वे इतने छिन्न-भिन्न हैं, और धूधले हो गये हैं कि उनका विशेष वृत्तान्त पाना असम्भव है।
१०-११ वीं शती में जैनियों ने अपने मन्दिरों में चित्रनिर्माण द्वारा दक्षिण प्रदेश में चित्रकला को खूब पुष्ट किया । उदाहरणार्थ, तिरु मलाई के जैनमन्दिर में अब भी चित्रकारी के सुन्दर उदाहरण विद्यमान है जिनमें देवता व किंपुरुष आकाश में मेघों के बीच उड़ते हुए दिखाई देते है । देव पंक्तिबद्ध होकर समोसरण की ओर जा रहे हैं । गंधर्व व अप्सराएं भी बने हैं। एक देव फूलों के बीच खड़ा हुआ है। श्वेत वस्त्र धारण किये अप्सराएं पंक्तिबद्ध स्थित हैं । एक चित्र में दो मुनि परस्पर सम्मुख बैठे दिखाई देते हैं । कहीं दिगम्बर मुनि आहार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org