________________
जैन कला
जिसमें प्रत्येक कंधे पर दो-दो बालक बैठे दिखाई देते हैं तथा दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है ।
कुछ मूर्तियां प्रजामुख देवी की हैं । एक मूर्ति (ई २) एक फुट चार इंच ऊंची है, जिसमें देवी के स्तन स्पष्ट हैं। उसके बाएं हाथ में एक तकिया है, जिस पर एक बालक अपने दोनों हाथ बृक्षस्थल पर रखे हुए लटका है । देवी का दाहिना हाथ खंडित है; किन्तु अनुमानतः वह कंधे की ओर उठ रहा है । इसी प्रकार की दूसरी मूति (ई ३) में स्तनों पर हार लटक रहा है । तीसरी मूर्ति (नं० ७९६) साढ़े आठ इंच ऊंची है। देवी अजामुख है, किन्तु वह किसी बालक को धारण नहीं किये है। उसके दाहिने हाथ में कमल और बांए हाथ में प्याला है । एक अन्य मूर्ति (नं. १२१०) दस इंच ऊंची है, जिसमें देवी अपनी बांयीं जंघा पर बालक को बैठाये है, और बाएं हाथ से उसे पकड़े है। दाहिना हाथ अभय मुद्रा में हैं । सिर पर साढ़े पांच इंच व्यास का प्रभावल भी है। स्तनों पर सुस्पष्ट हार भी है । एक अन्य छोटी सी मूर्ति विशेष उल्लेखनीय है । यह केवल पांच इंची ऊंची है, किन्तु उसमें अजामुख देवी की चार भुजाए हैं, और वह एक पर्वत पर ललितासन विराजमान है । उसकी बांयी जंघा पर बालक बैठा है, जो प्याले को हाथों में लिए दूध पी रहा है । देवी के हाथों में त्रिशूल, प्याला व पाश है । उसके दाहिने पैर के नीचे उसके वाहन की आकृति कुछ अस्पष्ट है, जो सम्भवतः बैल या भैंसा होगा
कुछ मूर्तियां ऐसी भी हैं जिनमें यह मातृदेवी अजामुख नहीं, किन्तु स्त्री-मुख बनाई गई है । ऐसी एक मूर्ति (ई ४ ) १ फुट २ इंच ऊँची है जिसमें देवी एक शिश को अपनी गोदी में सुलाये हुए है। देवी का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में है । मूर्ति कुषाणकालीन है। इसी प्रकार की बलिक को सुलाये हुए एक दूसरी मूर्ति भी है। बालकों सहित एक अन्य उल्लेखनीय मूर्ति (नं० २७८) १फुट साढ़े सात इंच ऊँची व ६ इंच चौड़ी है, जिसमें एक स्त्री व पुरुष पास-पास एक वृक्ष के नीचे ललितासन में गैठे हैं वृक्ष के ऊपरी भाग में छोटी सी ध्यानस्थ जिन मूर्ति बनी हुई है, और वृक्ष की पीड़ (तना) पर गिरगिट चढ़ता हुआ दिखाई देता है । पाद-पीठ पर एक दूसरी आकृति है, जिसमें बायां पैर ऊपर उठाया हुआ है, और उसके दोनों ओर ६ बालक खेल रहे हैं । इस प्रकार की एक मूर्ति चन्देरी (म० प्र०) में भी पाई गई है, तथा एक अन्य मूर्ति प्रयाग नगरपालिका के संग्रहालय में भी है।
उपयुक्त समस्त मूर्तियां मूलतः एक जैन आख्यान से सम्बधित है, और अपने विकास क्रम को प्रदर्शित कर रही हैं। कल्प-सूत्र के अनुसार इन्द्र की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org