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जैन मूर्तियाँ
पर जो प्रादिनाथ की प्रतिमा है, वह उसे स्पष्टत: जैन परम्परा की घोषित कर रही है । चक्रेश्वरी की मूर्तियां देवगढ़ के मन्दिरों में भी पाई गई हैं । श्रवणबेल गोला (मैसूर) के चन्द्रगिरि पर्वत पर शासन बस्ति नामक आदिनाथ के मन्दिर के द्वार पर आजू-बाजू गोमुख यक्ष और चक्रेश्वरी यक्षी की सुन्दर प्रतिमाएं हैं यह मन्दिर लेखानुसार शक १०४९ (१११७ ई०) से पूर्व बन चुका था । वहां के अन्यान्य मन्दिरों में नाना तीर्थंकरों के यक्ष-यक्षिणियों की प्रतिमाएं विद्यमान हैं (देखिए जं०शि० सं० भाग एक, प्रस्तावना) । इनमें अक्कन बस्ति नामक पार्श्वनाथ मन्दिर की साढ़े तीन फुट ऊंची धरेरणेन्द्र यक्ष और पद्मावती यक्षी की मूर्तियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं । इस मन्दिर का निर्माणकाल वहां के लेखानुसारं शक ११०३ (११८१ ई० ) है | कत्तले बस्ति में भी यह मूर्ति है । पद्मावती की इससे पूर्व के पश्चात् कालीन मूर्तियां जैनमन्दिरों में बहुतायत से पाई जाती है । इनमें खंडगिरि (उड़ीसा) की एक गुफा मूर्ति सबसे प्राचीन प्रतीत होती है | नालंदा व देवगढ़ की मूर्तियां ७ वीं ८ वीं शती की है । मध्यकाल से लगाकर इस देवी की पूजा विशेष रूप से लोक प्रचलित हुई पाई जाती है ।
अम्बिका देवी की मूर्ति
तीर्थंकरों के यक्ष-यक्षिणियों में सबसे अधिक प्रचार व प्रसिद्धि नेमिनाथ क्षिणी अम्बिका देवी की पाई जाती है । इस देवी की सबसे प्राचीन व विख्यात मूर्ति गिरनार ( ऊर्जयन्त) पर्वत की अम्बादेवी नामक टोंक पर है जिसका उल्लेख समन्तभद्र ने अपने बृहत्स्वयंम्भू स्तोत्र ( ( पद्य १२७) में खचरयोषित (विद्याधरी) नाम से किया है ( पृ० ३३९ ) । जिनसेन ने भी अपने हरिवंश पुराण (शक् ७०५) में इस देवी का स्मरण इस प्रकार किया है-
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ग्रहीतचक्राप्रतिचक्रदेवता तथोर्जयन्तालय - सिंहवाहिनी ।
शिवाय यस्मिन्निह सन्निधीयते क्व तत्र विघ्नाः प्रभवन्ति शासने ||
(ह० पु० प्रशस्ति)
इस देवी की एक उल्लेखनीय पाषाण-प्रतिमा १ फुट ६ इंच ऊंची मथुरा संग्रहालय में है । अम्बिका एक वृक्ष के नीचे सिंह पर स्थित कमलासन पर विराजमान है । बांया पैर ऊपर उठाया हुआ व दाहिना पृथ्वी पर है । दाहिने हाथ में फलों का गुच्छा है, व बांया हाथ बायीं जंघा पर बैठे हुए बालक को सम्भाले है । बालक वक्षस्थल पर झूलते हुए हार से खेल रहा है । अधोभाग वस्त्रालंकृत है और ऊपर वक्षस्थल पर दोनों स्कंधों से पीछे की ओर डाली हुई ओढ़नी है ।
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