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जैन कला
यह प्रतिमा
सम्भवतः सातवीं शती व उसके मी कुछ वर्ष पूर्व प्रतीत होता है । एक गोलाकार पीठ पर खड़ी है, और उसकी ऊंचाई २० इन्च है । माधवी - लता पत्तों सहित पैरों और बाहुओं से लिपटी हुई है । सिर के बाल जैसे कंधी से पीछे की ओर लौटाये हुए दिखाई देते हैं, तथा उनकी जटाएं पीठ व कंधों पर बिखरी है । भौहें ऊपर को चढ़ी हुई व उथली बनाई गई हैं । कान नीचे को उतरे व छिदे हुए हैं। नाक पैनी व झुकी हुई है । कपोल व दाढ़ी खूब मांसल व भरे हुए हैं । मुखाकृति लम्बी व गोल है । वक्षस्थल चौड़ाई को लिए हुए चिकना है व चूचूक चिह्न मात्र दिखाये गये हैं । नितम्ब-भाग गुलाई लिए हुए है। पैर सीधे और घुटने भले प्रकार दिखाये गये हैं । बाहुएं विशाल कंधों से नीचे की ओर शरीर आकृति के वलन का अनुकरण कर रही है । हस्ततल बाहुओं को सहारा मिले । इस
जंघाओं से गुट्टों के द्वारा जुड़े हुए हैं जिससे प्रतिमा का आकृति - निर्माण अतिसुन्दर हुआ है का तेज भले प्रकार झलकाया गया है । इस
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मुख पर ध्यान व आध्यात्मिकता आकृति निर्माण में श्री उमाकांत
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शाह ने इसकी तुलना - बादामी गुफा में उपलब्ध बाहुबलि की प्रतिमा से तथा ऐहोल की मूर्तियों से की है, जिनका निर्माण-काल ६ वी ७ वीं शती है ।
चक्रेश्वरी पद्मावती आदि यक्षियों की मूर्तियां -
जैन मूर्तिकला में तीर्थंकरों के अतिरिक्त जिन अन्य देवी-देवताओं को रूप प्रदान किया गया है, उनमें यक्षों और यक्षिणियों की प्रतिमाएं भी ध्यान देने योग्य हैं । प्रत्येक तीर्थंकर के अनुषंगी एक यक्ष और एक यक्षिणी माने गये हैं । आदि तीर्थंकर ऋषभनाथ की यक्षिणी का नाम चक्रेश्वरी है । इस देवी की एक ढाई फुट ऊंची पाषाण मूर्ति मधुरा संग्रहालय में विराजमान है । यह मूर्ति एक गरुड पर आधारित आसन पर स्थित है । इसका सिर व भुजाएं टूट-फूट गई हैं, तथापि उसका प्रभावल प्रफुल्ल कमलाकार सुअलंकृत विद्यमान है । भुजाएं दश रही हैं, और हाथ में एक चक्र रहा है। मूर्ति के दोनों पावों में एक-एक द्वारपालिका है, उनमें दायी प्रोर वाली एक चमर, तथा बायीं ओर वाली एक पुष्पमाला लिये हुए है। ये तीनों प्रतिमाएं भी कुछ खण्डित हैं । प्रधान मूर्ति के ऊपर पद्मासन व ध्यानस्थ जिन प्रतिमा है, जिसके दोनों ओर वंदनमालाएं लिए हुए उड़ती हुई मूर्तियां बनी हैं। यह मूर्ति भी कंकाली टीले से प्राप्त हुई है, और कनिंघम साहब ने इसे ब्राह्मण परम्परा की दशभुजी देवी समझा था । यह कोई आश्चर्य की बात नहीं । मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में ही कटनी के समीप विलहरी ग्राम के लक्ष्मणसागर के तट पर एक मन्दिर में चक्रेश्वरी की मूर्ति खैरामाई के नाम से पूजी जा रही है, किन्तु मूर्ति के मस्तक
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