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जैन मन्दिर
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भगवान् की सिंहासनस्थ मूर्ति भी कौशलपूर्ण रीति से बनी है।
हलेबीड में होटसलेश्वर मन्दिर के समीप हल्लि नामक ग्राम में एक ही घेरे के भीतर तीन जैन मन्दिर है, जिनमें पार्श्वनाथ मन्दिर विशेष उल्लेखनीय है मन्दिर के अधिष्ठान व बाह्य भित्तियों पर बड़ी सुन्दर आकृतियां बनी हैं। नवरंग मंडप में शिखर युक्त अनेक वेदिकाएं है, जिनमें पहले २४ तीर्थंकरों की मूर्तियां प्रतिष्ठित रही होंगी। छत की चित्रकारी इतनी उत्कृष्ट है कि जैसी सम्भवतः हलेबीड भर में अन्यत्र कहीं नहीं पाई जाती। यह छत १२ अतिसुन्दर आकृति वाले काले पाषाण के स्तम्भों पर आधारित है । इन स्तम्भों की रचना, खुदाई और सफाई देखने योग्य है । उनकी घुटाई तो ऐसी की गई है कि उसमें आज भी दर्शक दर्पण के समान अपना मुख देख सकता है। पार्श्वनाथ की १४ फुट ऊंची विशाल मूर्ति सप्तफणी नाग से युक्त है। मर्ति की मुखमुद्रा सच्चे योगी की ध्यान व शान्ति की छटा को लिये हुए है। शेष दो आदिनाथ व शांतिनाथ के मन्दिर भी अपना अपना सौन्दर्य रखते हैं । ये सभी मन्दिर १२ वीं शती की कृतियाँ हैं।
होयसल काल के पश्चात् विजयनगर राज्य का युग प्रारम्भ होता है, जिसमें द्राविड़ वास्तु-कला का कुछ और भी विकास हुआ। इस काल की जैन कृतियों के उदाहरण गनीगित्ति, तिरूमल लाइ, तिरुपत्तिकुंडरम, तिरुप्पनमर, मडबिद्री आदि स्थानों में प्रचुरता से पाये जाते हैं। इन वर्तमान में सबसे प्रसिद्ध मूडबिद्री का चन्द्रनाथ मन्दिर है, जिसका निर्माण १४ वीं शती में हुआ है। यह मन्दिर एक घेरे के भीतर है द्वार से प्रवेश करने पर प्रांगण में अतिसुन्दर मानस्तम्भ के दर्शन होते हैं । मन्दिर में लगातार तीन मंडप-शालाएं हैं, जिनमें होकर विमान (शिखर युक्त गर्भगृह) में प्रवेश होता है । मंडपों के अलग-अलग नाम है-तीर्थंकर मंडप, गद्दी मंडप व चित्र मंडप । मन्दिर की बाह्याकृति काष्ठरचना का स्मरण कराती है । किन्तु भीतरी समस्त रचना पाषाणोचित ही है । स्तम्भ बड़े स्थूल और कोई १२ फुट ऊंचे हैं, जिनका निचला भाग चौकोर है व शेष ऊपरी भाग गोलाकार घुमावदार व कमल- कलियों की आकृतियों से अलंकृत है। चित्रमंडप के स्तम्भ विशेष रूप से उत्कीर्ण हैं । उन पर कमलदलों की खुदाई असाधारण सौष्ठव और सावधानी से की गई है।
जैन बिहार का सर्वप्रथम उल्लेख पहाड़पुर (जिला राजशाही-बंगाल) के उस ताम्रपत्र के लेख में मिलता है जिसमें पंचस्तूप निकाय या कुल के निर्ग्रन्थ श्रमणाचार्य गुहनंदि तथा उनके शिष्य-प्रशिष्यों से अधिष्ठित बिहार मन्दिर में अर्हन्तों की पूजा-अर्चा के निमित्त अक्षयदान दिये जाने का उल्लेख है । यह गुप्त
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