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जैन मन्दिर
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मन्दिर साँची, तिगवा और ऐरण में विद्यमान हैं। दूसरी शैली के उदाहरण हैं-नाचना-कुठारा का पार्वती मन्दिर तथा भूमरा ( म० प्र० ) का शिव मन्दिर (५-६ वीं शती) आदि। इसी शैली का उपर्युक्त ऐहोल का मेघुटी मन्दिर है । तीसरी शैली के उदाहरण हैं-देवगढ़ (जिला झाँसी) का दशावतार मन्दिर तथा भीतरगाँव (जिला कानपुर) का मन्दिर व बोध गया का महाबोधि मन्दिर, जिस रूप में कि उसे चीनी यात्री ह्वेन्त्सांग ने देखा था। ये मन्दिर छठी शती के अनुमान किये जाते हैं।। __ जैन आयतन, चैत्यगृह, बिब और प्रतिमा, व तीर्थ आदि के प्रचुर उल्लेख प्राचीनतम जैन शास्त्रों में पाये जाते हैं (कुंदकुंदः बोधपाहुड, ६२, आदि) दिगम्बर परम्परा की नित्य पूजा-वन्दना में उन सिद्धक्षेत्रों को नमन करने का नियम है जहां से जैन तीर्थंकरों व अन्य मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया । निर्वाण कांड नामक प्राकृत नमन स्त्रोत में निम्न सिद्धक्षेत्रों को नमस्कार किया गया
सिद्धक्षेत्र १ अष्टापद
मा
२ चम्पा ३ ऊर्जयन्त
४ पावा ५ सम्मेदशिखर
६ तारनगर ७ पावागिरी ८ शत्रुजय ६ गजपंथ
ज्ञात नाम व स्थिति किसका निर्वाण हुआ (कैलाश हिमालय में) प्र. तीर्थंकर ऋषभ, नाग
कुमार, व्याल-सहाव्याल भागलपुर (बिहार) १२ वे तीर्थ० वासुपूज्य गिरनार (काठियावाड़) २२ वें तीर्थ० नेमिनाथ,
प्रद्य म्न, पावापुर (पटना, बिहार) २४ वें तीर्थ० महावीर पारसनाथ (हजारीबाग, शेष २० तीथंकर बिहार) तारंगा
वरदत्त, वरांग, सागरदत्त ऊन (खरगोन, म. प्र.) लाट नरेन्द्र, सुवर्णभद्रादि काठियावाड़
पांडव व द्रविड़ नरेन्द्र नासिक (महाराष्ट्र) बलभद्र व अन्य यादव
नरेन्द्र मांगीतुगी (महाराष्ट्र) राम, हनु, सुग्रीव, गवय,
गवाक्ष, नील, महानील सोनागिरी (झांसी, उ. प्र.) नंग-अनंगकुमार ओंकार मान्धाता (म.प्र. रावण के पुत्र ,
दो चक्रवर्ती वावनगजा (बड़वानी, म. प्र.) इन्द्रजित्, कुकर्ण
१० तुगीगिरी
११ सुवर्णगिरी १२ रेवातट १३ सिद्धवरकूट १४ चूलगिरी
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