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________________ ३१६ जैन कला । मार्ग पर स्थित कुजीयुर नामक ग्राम से पांच मील उत्तर की ओर पहाड़ी पर है, जो अब श्री भगवती मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर पहाड़ी पर स्थित एक विशाल शिला को काटकर बनाया गया है, और सामने की ओर तीन ओर पाषाण-निर्मित भित्तियों से उसका विस्तार किया गया है । शिला के गुफा-भाग के दोनों प्रकोष्ठों में विशाल पद्मासन जिनमूर्तियां सिंहासन पर प्रतिष्ठित हैं । शिला का समस्त आभ्यंतर व बाह्य भाग जैन तीर्थंकरों की कोई ३० उत्कीर्ण प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। कुछ के नीचे केरल की प्राचीन लिपि वत्तजेत्थु में लेख भी हैं, जिनसे उस स्थान का जैनत्व तथा निर्मितिकाल नौवीं शती सिद्ध होता है । यत्र-तत्र जो भगवती देवी की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं, वे स्पष्टतः उत्तरकालीन हैं । (जै० एण्टी० ८।१, पृ० २६) ___ अंकाई-तंकाई नामक गुफा-समह येवला तालुके में मनमाड़ रेलवे जंकशन से नौ मील दूर अंकाई नामक स्टेशन के समीप स्थित है। लगभग तीन हजार फुट ऊंची पहाड़ियों में सात गुफाएं हैं, जो हैं तो छोटी-छोटी, किन्तु कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । प्रथम गुफा में बरामदा, मंडप व गर्भगृह हैं । सामने के भाग के दोनों खंभों पर द्वारपाल उत्कीर्ण हैं। मंडप का द्वार प्रचुर आकृतियों से पूर्ण है; अंकन बड़ी सूक्ष्मता से किया गया है। वर्गाकार मंडप चार खम्भों पर आधारित है । गर्भगृह का द्वार भी शिल्पपूर्ण है । गुफा दुतल्ली है, व ऊपर के तल्ले पर भी शिल्पकारी पाई जाती है। दूसरी गुफा भी दूतल्ली हैं। नीचे का बरामदा २३४ १२ फुट हैं। उसके दोनों पावों में स्वतंत्र पाषाण की मूर्तियां हैं, जिनमें इन्द्र-इन्द्राणी भी हैं । सीढ़ियों से होकर दूसरे तल पर पहुंचते ही दोनों पार्यों में विशाल सिंहों की आकृतियाँ मिलती हैं । गर्भगृह ९X ६ फुट है। तीसरी गुफा के मंडप की छत पर कमल की आकृति बड़ी सुन्दर है । उसकी पखुड़ियां चार कतारों में दिखाई गई हैं, और उन पंखुड़ियों पर देवियां वाद्य सहित नृत्य कर रही हैं। देव-देवियों के अनेक युगल नाना वाहनों पर आरूढ़ है । स्पष्टतः यह दृश्य तीर्थंकर के जन्म कल्याणक के उत्सव का है। गर्भगृह में मनुष्याकति शांतिनाथ व उनके दोनों ओर पार्श्वनाथ की मूर्तियां हैं । शांतिनाथ के सिंहासन पर उनका मृग लांछन, धर्मचक्र, व भक्त और सिंह की आकृतियां - बनी हैं। कंधों के ऊपर से विद्याधर और उनसे भी ऊपर गजलक्ष्मी की आकतियां हैं। ऊपर से गंधों के जोड़े पुष्पवृष्टि कर रहे हैं। सबसे ऊपर तोरण बना है । चौथी गुफा का बरामदा ३०X८ फुट है, एवं मंडप १८ फुट ऊंचा व २४- २४ फुट लंबा-चौड़ा है । बरामदे के एक स्तम्भ पर लेख भी है, जो पढ़ा नहीं जा सका; किन्तु लिपि पर से ११ वीं शती का अनुमान किया जाता हैं । शैली आदि अन्य बातों पर से भी इन गुफाओं का निर्माण-काल यही प्रतीत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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