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________________ ३१४ जैन कला फुट ऊंची प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। बादामी तालुके में स्थित ऐहोल नामक ग्राम के समीप पूर्व और उत्तर की ओर गुफाएं हैं, जिनमें भी जैनमूर्तियां विद्यमान हैं । प्रधान गुफाओं की रचना बादामी की गुफा के ही सदृश है । गुफा बरामदा, मंडप व गर्भगृह में विभक्त है। बरामदे में चार खंभे हैं, और उसकी छत पर मकर, पुष्प आदि की आकृतियां बनी हुई हैं। बांई भित्ति में पार्श्वनाथ की मूर्ति है, जिसके एक ओर नाग व दूसरी ओर नागिनी स्थित है। दाहिनी ओर चैत्य-वृक्ष के नीचे जिनमूर्ति बनी है। इस गुफा की सहस्त्रफणा युक्त पार्श्वनाथ की प्रतिमा कला की दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण है। अन्य जैन आकृतियां व चिन्ह भी प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं। सिंह, मकर व द्वारपालों की आकृतियां भी कलापूर्ण हैं, और ऐलीफेन्टा की आकतियों का स्मरण कराती हैं । गुफाओं से पूर्व की ओर वह मेघुटी नामक जैन मंदिर है जिसमें चालुक्य नरेश पुलकेशी व शक सं० ५५६ (ई० ६३४) का उल्लेख है। यह शिलालेख अपनी संस्कृत काव्य शैली के विकास में भी अपना स्थान रखता है । इस लेख के लेखक रविकीर्ति ने अपने को काव्य के क्षेत्र में कालिदास और भारवि की कीर्ति को प्राप्त कहा है। यथार्थतः कालि दास व भारवि के काल-निर्णय में यह लेख बड़ा सहायक हुमा है, क्योंकि इसी से उनके काल की अन्तिम सीमा प्रामाणिक रूप से निश्चित हुई है। ऐहोल सम्भवतः 'आर्यपुर' का अपभ्रष्ट रूप है। गुफा-निर्माण की कला एलोरा में अपने चरम उत्कर्ष को प्राप्त हुई है। यह स्थान यादव नरेशों की राजधानी देवगिरि (दौलताबाद) से लगभग १६ मील दूर है, और वहां का शिलापर्वत अनेक गुफा-मंदिरों से अलंकृत है । यही कैलाश नामक शिव मंदिर है जिसकी योजना और शिल्पकला इतिहास-प्रसिद्ध है। यहां बौद्ध, हिन्दू व जैन, तीनों सम्प्रदायों के शैल मंदिर बड़ी सुन्दर प्रणाली के बने हुए हैं। यहां पांच जैन गुफाएं हैं, जिनमें से तीन अर्थात् छोटा कैलाश, इन्द्रसभा व जगन्नाथ सभा कला की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण हैं । छोटा कैलाश एक ही पाषाण-शाला को काटकर बनाया गया है, और उसकी रचना कुछ छोटे आकार में उपयुक्त कैलाश मंदिर का अनुकरण करती है। समूचा मंदिर ८० फुट चौड़ा व १३० फुट ऊंचा है । मंडप लगभग ३६ फुट लम्बा-चौड़ा है, और उसमें १६ स्तम्भ हैं। इन्द्रसभा नामक गुफा मंदिर की रचना इस प्रकार हैं:-पाषाण में बने हुए द्वार से भीतर जाने पर कोई ५०४५० फुट चौकोर प्रांगण मिलता है, जिसके मध्य में एक पाषाण से निर्मित द्राविड़ी शैली का चैत्यालय है। इसके सम्मुख दाहिनी ओर एक हाथी की मूर्ति है, व उसके सम्मुख बाई ओर ३२ फुट ऊँचा ध्वज-स्तंभ है । यहां से घूमकर पीछे की ओर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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