SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०८ जैन कला शती तक ऐसा श्रद्धान बना रहा कि अवसर मिलते ही कलिंग सम्राट ने उसे वापस लाकर अपने यहां प्रतिष्ठित करना आवश्यक समझा । इस प्रकार यह गुफा और वहां का लेख भारतीय इतिहास, और विशेषतः जैन इतिहास, के लिये बड़े महत्व की वस्तु है । उदयगिरि की यह रानी गुफा (हाथी गुफा) यथार्थतः एक सुविस्तृत बिहार रहा है जिसमें मूर्ति-प्रतिष्ठा भी रही, व मुनियों का निवास भी। इसका अंत-. रंग ५२ फुट लम्बा व २८ फुट चौड़ा है, तथा द्वार की ऊंचाई १११ फुट है । वह दो मंजिलों में बनी है । नीचे की मंजिल में पंक्तिरूप से आठ, व ऊपर की पंक्ति में छह प्रकोष्ठ हैं । २० फुट लम्बा बरामदा ऊपर की मंजिल की एक विशेषता है । बरामदों में द्वारपालों की मूर्तियां खुदी हुई हैं । नीचे की मंजिल का द्वारपाल सुसज्जित सैनिक सा प्रतीत होता है। बरामदों में छोटे-छोटे उच्च प्रासन भी बने हैं। छत की चट्टान को सम्भालने के लिये अनेक स्तंभ खड़े किये गये हैं। एक तोरण-द्वार पर त्रिरत्न का चिन्ह व अशोक वृक्ष की पूजा का चित्रण महत्वपूर्ण है। त्रिरत्न-चिन्ह सिंधघाटी की मुद्रा पर के आसीन देव के मस्तक पर के त्रिशृग मुकुट के सदृश है । द्वारों पर बहुत सी चित्रकारी भी है, जो जैन पौराणिक कथाओं से सम्बन्ध रखती है । एक प्रकोष्ठ के द्वार पर एक पक्षयुक्त हरिण व धनुषबाण सहित पुरुष, युद्ध, स्त्री-अपहरण आदि घटनाओं का चित्रण बड़ा सुन्दर हुआ है। एक मतानुसार यह जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के जीवन की एक घटना का चित्रण है, जिसके अनुसार उन्होंने कलिंग के यवन नरेश द्वारा हरण की गई प्रभावती नामक कन्या को बचाया और पश्चात् उससे विवाह किया था। एक मत यह भी है कि यह वासवदत्ता व शकुन्तला सम्बन्धी प्राख्यानों से सम्बन्ध रखता है। किन्तु उस जैन गुफा में इसकी सम्भावना नहीं प्रतीत होती । चित्रकारी की शैली सुन्दर और सुस्पष्ट है, व चित्रों की योजना प्रमाणानुसार है । विद्वानों के मत से यहां की चित्रण कला भरहुत व सांची के स्तूपों से अधिक सुन्दर है। उदयगिरि व खंडगिरि में सब मिलाकर १९ गुफाएं हैं, और उन्हीं के निकटवर्ती नीलगिरि नामक पहाड़ी में और भी तीन गुफाएं देखने में आती हैं। इनमें उपर्युक्त रानीगुफा के अतिरिक्त मंचपुरी और वैकुठपुरी नामक गुफाएं भी दर्शनीय हैं, और वहाँ के शिलालेखों तथा कलाकृतियों के आधार से खारवेल व उनके समीपवर्ती काल की प्रतीत होती हैं । खंडगिरि की नवमुनि नामक गुफा में दसवीं शती का एक शिलालेख है जिसमें जैन मुनि शुभचन्द्र का नाम आया है। इससे प्रतीत होता है कि यह स्थान ई०पू० द्वितीय शती से लगाकर कम से कम दसवीं शती तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy