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जैन गुफाएं
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नामक गुफाओं के लेखों में आजीवकों को दान किये जाने का स्पष्ट उल्लेख है। सुदामा गुफा के लेख में उसे न्यग्रोध गुफा कहा गया है। इसमें दो मंडप हैं । बाहिरी ३३'x २०' का व भीतरी १९' X १६' लम्बा-चौड़ा है। ऊंचाई लगभग १२' हैं । विश्व-झोपड़ी के लेख में इस पहाड़ी का 'खलटिक पर्वत' के नाम से उल्लेख पाया जाता है। शेष दो गुफाओं के नाम 'करण चौपार' व 'लोमसऋषि' गुफा हैं । किन्तु करणचौपार को लेख में 'सुपियागुफा' कहा गया है, और लोमस-ऋषि गुफा को 'प्रवरगिरिगुफा' । ये सभी गुफाएं कठोर तेलिया पाषाण को काट कर बनाई गई हैं, और उन पर वही चमकीला पालिश किया गया है, जो मौर्य काल की विशेषता मानी गई है।
नागार्जुनी पहाड़ी की तीन गुफाओं के नाम हैं-गोपी गुफा, बहिया की गुफा, और वेदथिका गुफा । प्रथमे गुफा ४५'X१६' लम्बी-चोड़ी है। पश्चात् कालीन अनन्तवर्मा के एक लेख में इसे 'विन्ध्यभूधर गुहा' कहा गया है, यद्यपि दशरथ के लेख में इसका नाम गोपिक गुहा स्पष्ट अंकित है, और आजीवक भदन्तों को दान किये जाने का भी उल्लेख है। ऐसा ही लेख शेष दो गुफाओं
में भी है । ई० पू० तीसरी शती की मौर्यकालीन इन गुफाओं के पश्चात् . उल्लेखनीय हैं उड़ीसा की कटक के समीपवर्ती उदयगिरि व खंडगिरि नामक पर्वतों की गुफाएं जो उनमें प्राप्त लेखों पर से ई० पू० द्वितीय शती की सिद्ध होती हैं। उदयगिरि की 'हाथीगुफा' नामक गुफा में प्राकृत भाषा का यह सुविस्तृत लेख पाया गया है जिसमें कलिंग सम्राट खारवेल के बाल्यकाल व राज्य के १३ वर्षों का चरित्र विधिवत् वर्णित है । यह लेख अरहंतों व सर्वसिद्धों को नमस्कार के साथ प्रारम्भ हुआ है, और उसकी १२ वीं पंक्ति में स्पष्ट उल्लेख है, कि उन्होंने अपने राज्य के १२ वें वर्ष में मगध पर आक्रमण कर वहां के राजा वृहस्पतिमित्र को पराजित किया, और वहां से कलिंग-जिन की मूर्ति अपने देश में लौटा लिया जिसे पहले नंदराज अपहरण कर ले गया था। इस उल्लेख से जैन इतिहास व संस्थानों सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण बातें सिद्ध होती हैं। एक तो यह कि नंदकाल अर्थात् ई० पू० पांचवीं-चौथी शती में भी जैन मूर्तियां निर्माण कराकर उनकी पूजा-प्रतिष्ठा की जाती थी। दूसरे यह कि उस समय कलिंग देश में एक प्रसिद्ध जैन मंदिर व मूर्ति थी, जो उस प्रदेश भर में लोकपूजित थी। तीसरे यह कि वह नंद-सम्राट जो इस जैन मूर्ति को अपहरण कर ले गया, और उसे अपने यहां सुरक्षित रखा, अवश्य जैन धर्मावलंबी रहा होगा, व उसने उसके लिये अपने यहां भी जैन मंदिर बनवाया होगा। चौथे यह कि कलिंग देश की जनता व राजवंश में उस जैन मूर्ति के लिये बराबर दो-तीन
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