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जैन धर्म और कला
कलाकार ने प्रकृति के यथार्थ प्रतिबिम्बन में ही अपनी कला की सफलता मानी है, इस कारण उस कला को हम पूर्णतः आधिभौतिक व धर्म निरपेक्ष कह सकते हैं । किन्तु भारतीय कलाकारों ने प्रकृति के इस यान्त्रिक (फोटो-ग्राफिक) चित्रण मात्र को अपने कला के आदर्श की दृष्टि से पर्याप्त नहीं समझा । उनके मन से उनकी कलाकृति द्वारा यदि दर्शक ने कुछ सीखा नहीं, समझा नहीं, कुछ धार्मिक, नैतिक व भावात्मक उपदेश पाया नहीं, तो उस कृति से लाभ ही क्या हुआ ? इसी जन-कल्याण की भावना के फलस्वरुप हमारी कलाकृतियों में नैसगिकता के अतिरिक्त कुछ और भी पाया जाता हैं, जिसे हम कलात्मक अतिशयोक्ति कह सकते हैं । स्थापत्य की कृतियों में हमारा कलाकार अपनी दिव्य विमान की कल्पना को सार्थक करना चाहता है । देवों की मूर्तियों में तो वह दिव्यता भरता ही है, मानवीय मूर्तियों व चित्रों में भी उसने आध्यात्मिक उत्कर्ष के आरोप का प्रयत्न किया है। पशु-पक्षी व वृक्षादि का चित्रण यथावत् होते हुए भी उसे ऐसी भूमिका देने का प्रयत्न किया है कि जिससे कुछ न कुछ श्रद्धा, भाव-शुद्धि व नैतिक परिष्कार - उत्पन्न हो । इस प्रकार जैन कला का उद्देश्य जीवन का उत्कर्षण रहा है, उसकी समस्त प्रेरणा धार्मिक रही है, और उसके द्वारा जैन तत्त्वज्ञान व आचार के आदर्शों को मूर्तिमान रुप देने का प्रयत्न किया गया है ।
जैन धर्म और कला -
बहुधा कहा जाता है कि जैन धर्म ने जीवन के विधान-पक्ष को पुष्ट न कर निषेधात्मक वृत्तियों पर ही विशेष भार दिया है । किन्तु यह दोषारोपण यथा
तः जैन धर्म की अपूर्ण जानकारी का परिणाम है । जैन धर्म में अपनी अनेकान्त दृष्टि के अनुसार जीवन के समस्त पक्षों पर यथोचित ध्यान दिया गया है | अच्छे और बुरे के विवेक से रहित मानव व्यवहार के परिष्कार के लिये . कुछ आदर्श स्थापित करना और उनके अनुसार जीवन की कुत्सित वृत्तियों का निषेध करना संयम की स्थापना के लिये सर्वप्रथम आवश्यक होता है । जैन धर्म ने आत्मा को परमात्मा बनाने का चरम आदर्श उपस्थित किया; उस ओर गतिशील होने के लिये अपने कर्म - सिद्धान्त द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को पूर्णत: उत्तरदायी बनाया और प्रेरित किया; तथा व्रत नियम आदि धार्मिक व्यवस्थाओं के द्वारा वैयक्तिक, सामाजिक व आध्यात्मिक अहित करने वाली प्रवृत्तियों से उसे रोकने का प्रयत्न किया । किन्तु उसका विधान -पक्ष सर्वथा अपुष्ट रहा हो, सो बात नहीं। इस बात को स्पष्टतः समझने के लिये जैनधर्म
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