________________
२४ε
कोई अद्वितीय वस्तु नहीं हैं, क्योंकि व्यवहार में हम बिना स्यात् शब्द का प्रयोग किये भी कुछ उस सापेक्षभाव का ध्यान रखते ही हैं । तथापि शास्त्रार्थ में कभीकभी किसी बात की सापेक्षता की ओर ध्यान न दिये जाने से बड़े-बड़े विरोध और मतभेद उपस्थित हो जाते हैं, जिनमें सामंजस्य बैठाना कठिन प्रतीत होने लगता है । जैन स्याद्वाद प्रणाली द्वारा ऐसे विरोधों और मतभेदों को अवकाश न देने का प्रयत्न किया गया है, और जहां विरोध दिखाई दे जाय, वहां इस स्यात् पद में उसे सुलझाने और सामंजस्य बैठाने की कुंजी भी साथ ही लगा दी गई है । व्याकरणात्मक व्युत्पत्ति के अनुसार स्यात् अस् धातु का विधिलिंग अन्य पुरुष, एक वचन का रूप है; जिसका अर्थ होता है 'ऐसा हो' 'एक सम्भावना यह भी है' । जैन न्याय में इस पद को सापेक्ष -विधान का वाचक अव्यय बनाकर अपना अनेकान्त विचारशैली को प्रकट करने का साधन बनाया गया है। इसे अनिश्चय-बोधक समझना कदापि युक्तिसंगत नहीं है ।
नय
नय
के द्वारा ही
पदार्थों के अनन्त गुण और पर्यायों में से प्रयोजनानुसार घर्मं सम्बन्धी ज्ञाता के अभिप्राय का नाम नय है; और नयों नाना गुणांशों का विवेचन सम्भव है । वाणी में भी एक समय गुण-धर्म का उल्लेख सम्भव है, जिसका यथोचित प्रसंग नयविचार सम्भव हो सकता है । इससे स्पष्ट है कि जितने प्रकार के वचन सम्भव हैं, उतने ही प्रकार के नय कहे जा सकते हैं । तथापि वर्गीकरण की सुविधा के लिये नयों की संख्या सात स्थिर का गई है, जिनके नाम हैं- नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत । नैगम का अर्थ है-न एकः गमः अर्थात् एक ही बात नहीं । जब सामान्यतः किसी वस्तु की भूत, भविष्यत्, वर्तमान पर्यायों को मिलाजुलाकर बात कही जाती है, तब वक्ता का अभिप्राय नैगम-नयात्मक होता है । जो व्यक्ति आग जला रहा है, वह यदि पूछने पर उत्तर दे कि मैं रोटी बना रहा हूं, तो उसकी बात नैगम नयकी मानी जा सकती है; क्योंकि उसका अभिप्राय यह है कि आग का जलाना उसे प्रत्यक्ष दिखाई देने पर भी, उसके पूछने का अभिप्राय यही था कि अग्नि किसलिये जलाई जा रही है । यहाँ यदि नैगम नय के आश्रय से प्रश्नकर्ता और उत्तरदाता के अभिप्राय को न समझा जाय, तो प्रश्न और उत्तर में हमें कोई संगति प्रतीत नहीं होगी । इसी प्रकार जब चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को कहा जाता है कि श्राज महावीर तीर्थंकर का जन्म-दिवस है, तब उस हजारों वर्ष पुरानी भूतकाल की घटना की आज के इस दिन से संगीत नंगम नय के द्वारा ही बैठकर बतलाई जा सकती है । संग्रहनय के द्वारा हम उत्तरोत्तर वस्तुओं को विशाल
अपेक्षा सच
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
किसी एक गुण
द्वारा ही वस्तु के
में किसी एक ही
www.jainelibrary.org