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अनुभाग बंध
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नाम और गोत्र इन दोनों की आठ अन्तर्मुहूर्त और २० कोडाकोड़ी सागर की कही गई है। जघन्य और उत्कृष्ट के बीच की समस्त स्थितयाँ मध्यम कहलाती हैं । एक मुहूर्तकाल का प्रमाण आधुनिक कालगणनानुसार ४८ मिनट होता है । एक मुहूर्त में एक समय हीन काल को भिन्नमुहूर्त और भिन्नमुहूर्त से एक समय हीन काल से लेकर एक आवलि तक के काल को अन्तमुहूर्त कहते हैं । १ आवलि १ सेकेन्ड के अल्पांश के बराबर होता है । सागर अथवा सागरोपम एक उपमा प्रमाण है, जिसकी संख्या नहीं की जा सकती, अर्थात् संख्यातीत वर्षों के काल को सागर कहते हैं । कोडाकोड़ी का अर्थ है १ करोड़ का वर्ग (१ करोड़४१ करोड़)। इस प्रकार कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति जो २०,३०,३३ या ७० कोड़ाकोड़ी सागरोपम की बतलाई गई है, वह हमें केवल उनकी परस्पर दीर्घता व अल्पता का बोध मात्र कराती है। सामान्यतः कभी कर्मों की उत्कृष्ट स्थितियां अप्रशस्त मानी गई हैं, क्योंकि उनका बंध संक्लेश रूप परिणामों से होता है। संक्लेश में जितनी मात्रा में हीनता और विशुद्धि की वृद्धि होगी, उसी अनुपात से स्थितिबंध हीन होता जाना है; और जघन्यस्थिति का बंध उत्कृष्ट विशुद्धि की अवस्था में होता है। विशुद्धि और संक्लेश का लक्षण धवलाकार ने बतलाया है कि साता-वेदनीय कर्म के बंध योग्य परिणाम को विशुद्धि, और असाता-वेदनीय के बंध योग्य परिणाम को संक्लेश मानना चाहिये ।
अनुभाग बंध
कर्मप्रकृतियों में स्थिति-बन्ध के साथ-साथ जो उनमें तीव्र या मन्द रसदायिनी शक्ति भी उत्पन्न होती है, उसी शक्ति का नाम अनुभाग बन्ध हैं; जिसप्रकार कि किसी फल में उसके मिठास व खटास की तीव्रता व मन्दता भी पाई जाती है। यह अनुभाग बन्ध भी बन्धक जीवों के भावानुसार उत्पन्न होता है । विशुद्ध परिणामों द्वारा साता वेदनीयादि पुण्य प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध होता है; और असाता वेदनीयादि पाप प्रकृतियों का जघन्य । तथा संक्लिष्ट परिणामों से असाता वेदनीयादि पाप प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध होता है, व साता वेदनीयादि पुण्य प्रकृतियों का जघन्य । इसप्रकार स्थिति बन्ध और अनुभाग बन्ध का परस्पर यह संबध पाया जाता है कि जहां स्थिति बन्ध को उत्कृष्टता और जघन्यता क्रमश: संक्लेश और विशुद्धि के अधीन है, वहां अनुभाग बन्ध की उत्कृष्टता और जघन्यता, प्रशस्त व अप्रशस्त प्रकृतियों में भिन्न प्रकार से उत्पन्न होती है । प्रशस्त प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग विशुद्धि के अधीन है, और अप्रशस्त का संक्लेश के; एवं जघन्यता इसके विपरीत ।
कर्मों की यह अनुभाग रूप फलदायिनी शक्ति उदाहरणों द्वारा समझायी जा
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