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________________ जैन साहित्य प्रभाचन्द्र कृत कथाकोष (१३ वीं शती) संस्कृत गद्य में लिखा गया है । इसमें भद्रबाहु-चन्द्रगुप्त के अतिरिक्त समन्तभद्र और अकलंक के चरित्र भी वर्णित हैं । नेमिदत्त कृत आराधना कथाकोष (१६ वीं शती) पद्यात्मक है, और प्रभाचन्द्र कृत कथाकोष का कुछ विस्तृत रूपान्तर है। इसी प्रकार का एक अन्यसंग्रह रामचन्द्र मुमुक्षु, कृत पुण्याश्रव कथाकोष है।। राजशेखर कृत अन्तर्कथा-संग्रह (१४ वीं शती) की कथाओं का संकलन आगम की टीकाओं पर से किया गया है । इसकी ८ कथाएं पुल्ले द्वारा इटालियन भाषा में अनुवादित हुई हैं । इसकी एक कथा का 'जजमेंट ऑफ सोलोमन' नाम से टेसीटोरी ने अंग्रेजी अनुवाद किया है। (इ० एन्टी० ४२) उसके साथ नन्दिसूत्र की मलयगिरि टीका की कथा भी है, और बतलाया है कि उक्त कथा का ही यूरोप की कथाओं में रूपान्तर हुआ है । लक्ष्मीसागर के शिष्य शुभशीलगणी (१५ वीं शती) कृत पंचशती प्रबोधसम्बन्ध में लगभग ६०० धार्मिक कथाएं हैं, जिनमें नन्द, सातवाहन, भर्तृहरि, भोज, कुमारपाल, हेमसूरि आदि ऐतिहासिक पुरुषों के चरित्र भी हैं । इसी कर्ता का एक अन्य कथाकोष 'भरतादिकथा' नामक है । जिनकीति कृत दानकल्पदुम (१५वीं शती में दान की महिमा बतलाने वाली रोचक और विनोदपूर्ण अनेक लघु कथाओं का संस्कृत पद्यों में संग्रह है । उदय धर्म कृत धर्मकल्पदुम (१५ वीं शती) में पद्यात्मक कथाएं हैं। सम्यकत्व-कौमुदी लघु कथाओं का एक कोष है । अर्हद्दास सेठ अपनी आठ पत्नियों को सुनाता है कि उसे किसप्रकार सम्यक्त्व प्राप्त हुआ, और वे फिर पति को अपने अनुभव सुनाती हैं । इस चौखट्टे के भीतर बहुत से कथानक गूंथे गये हैं। सम्यत्व-कौमुदी नामकी अनेक रचनायें उपलब्ध हैं, जैसे जयचन्द्रसूरि के शिष्य जिनहर्ष गणी कृत (वि० सं० १४८७), गुणकरसूरि कृत (वि० सं० १५०४) मल्लिभूषण कृत (वि० सं० १५४४ के लगभग) सिंहदत्तसूरि के शिष्य सोमदेवसूरि कृत (वि० सं० १५७३) शुभचन्द्र कृत (वि० सं० १६८० के लगभग), एवं अज्ञात समय की वत्सराज, धर्मकीर्ति, मंगरस, यशः कीर्ति व वादिभूषण कृत। हेमविजय कृत कथा-रत्नाकर (१६०० ई०) में २५८ कथानक हैं जिनमें अधिकांश उत्तम गद्य में, और कुछ थोड़े से पद्य में वर्णित हैं। यत्र-तत्र कृप्रात और अपभ्रंश पद्य भी पाये जाते हैं । इस रचना की विशेषता यह है कि प्रायः आदि अन्त में धार्मिक उपदेश की कड़ी जोड़नेवाले पद्यों के अतिरिक्त कथाओं में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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