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जैन साहित्य
माणिक्यसुन्दर कृत महावल-मलयसुन्दरी कथा (१५वीं शती) संस्कृत गद्य में लिखी गई है और उपाख्यानों का भंडार है ।
जयविजय के शिष्य मानविजय कृत पापबुद्धि-धर्म बुद्धि-कथा का दूसरा नाम कामघट कथा है इस सस्कृत गद्यात्मक कथानक के रचयिता हीरविजय सूरि द्वारा स्थापित विजयशाखा में हुए प्रतीत होते हैं, अतएव उनका काल १६-१७ वीं शती अनुमान किया जा सकता है। इसके कथानायक सिद्धर्षिकृत उपमिति भव प्रपंचा कथा के अनुसार भावात्मक व कल्पित हैं। वे क्रमश: राजा और मंत्री हैं। राजा धन और ऐश्वर्य को ही सब कुछ समझता है, और मंत्री धर्म को। अन्ततः मुनि के उपदेश से वे सम्बोधित और प्रवृजित होते हैं। यह कथानक यथार्थतः कर्ता की बड़ी रचना धर्म-परीक्षा का एक खंडमात्र है। इसका सम्पादन व इटैलियन अनुवाद लोवरिनी ने किया है ।
कुछ रचनाएं पृथक उल्लेखनीय हैं क्योंकि उनमें तीर्थ आदि स्थानों व पुरुषों के सम्बन्ध में कुछ ऐतिहासिक वृत्तान्त भी पाया जाता है जो प्राचीन इतिहास-निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। ऐसी कुछ कृतियां निम्नप्रकार
___धनेश्वरसूरि कृत शत्रुजय-माहात्म्य (७-८वीं शती) स्वयं कर्ता के अनुसार सौराष्ट्र नरेश शीलादित्य के अनुरोध से बलभी में लिखा गया था। इसमें १४ सर्ग हैं, और वैदिक परम्परा के पुराणों की शैली पर शत्रुजय तीर्थ का माहात्म्य वर्णन किया गया है। लोक-वर्णन के पश्चात् तीर्थंकर ऋषभ व उनके भरत और बाहुवली पुत्रों का तथा भरत द्वारा मन्दिरों की स्थापना का वृत्तान्त है।
में सर्ग में रामकथा व १० से १२ वें सर्ग तक पांडवों, कृष्ण और नेमिनाथ का चरित्र, और १४ चे में पार्व और महावीर का चरित्र आया है। यहां भीमसेन के संबंध का बहुत सा वृत्तान्त ऐसा है, जो महाभारत से सर्वथा भिन्न और नवीन है।
प्रभाचन्द्र कृत प्रभवाक-चरित्र (१२७७ ई०) में २२ जैन आचार्यों व कवियों के चरित्र बणित हैं, जिनमें हरिभद्र, सिद्धर्षि, बप्पट्टि, मानतुंग, .. शान्तिसूरि और हेमचन्द्र भी सम्मिलित हैं । इस प्रकार यह हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व की पूरक रचना कही जा सकती है, और ऐतिहासिक दृष्टि से उपयोगी है । इस का भी संशोधन प्रद्युम्न सूरि द्वारा किया गया था।
प्रभाचन्द्र के प्रभावक-चरित्र की परम्परा को मेरुतुंग ने अपने प्रबन्धचिन्तामणि (१३०६ ई०) तथा राजशेखर ने प्रबन्धकोष (१३४६ ई०) द्वारा प्रचलित रखा । इनमें बहुभाग तो काल्पनिक है, तथापि कुछ महत्वपूर्ण ऐति
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