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जैन साहित्य
कटिक नाटक का आधार रहा हो । (हिन्दी अनुवाद सहित, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, से प्रकाशित)
सकलकीर्ति (वि० सं० १४५०-१५१०) कृत हरिवंश पुराण ३६ सर्गों में समाप्त हुआ है । इसके १५ से अन्त तक के सर्ग उनके शिष्य जिनदास द्वारा लिखे गये हैं। इसमें रविषेण और जिनसेन का उल्लेख है, और उन्हीं की कृतियों के आधार से यह ग्रंथ-रचना हुई प्रतीत होती है। शुभचन्द्र कत पाण्डवपुराण (१५५१ ई०) जैन महाभारत भी कहलाता है, और उसमें जिनसेन व गुणभद्र कृत पुराणों के आधार से कथा वर्णन की गई है।
मलधारी देवप्रभसूरि कृत पाण्डव-चरित्र (ई० १२०० के लगभग) में १८ सर्ग हैं, और उनमें महाभारत के १८ पर्वो का कथानक संक्षेप में वर्णित है। छठे सर्ग में धुत-क्रीड़ा का वर्णन है, और यहां विदुर द्वारा चूत के दुष्परिणाम के उदाहरण रूप नल-कूबर (नल-दमयन्ती) की कथा कही गई है । कूबर नल का भाई था । १६ वें सर्ग में अरिष्टनेमि तीर्थंकर का चरित्र आया है, और १८ वें में उनके व पाण्डवों के निर्वाण तथा बलदेव के स्वर्ग-गमन का वृत्तान्त है। इस पुराण का गद्यात्मक रूपान्तर राजविजय सूरि के शिष्य देवविजय गणी (१६० ई०) कृत पाया जाता है। इसमें यत्र-तत्र देवप्रभ की कृति से तथा अन्यत्र से कुछ पद्य भी उद्धत किये गये हैं।
संस्कृत में तीसरी महत्वपूर्ण पौराणिक रचना महापुराण है । इसके दो भाग हैं-एक आदिपुराण और दूसरा उत्तरपुराण । आदिपुराण में ४७ पर्व या अध्याय हैं, जो समस्त १२००० श्लोक प्रमाण हैं। इनमें के ४२ पर्व और ४३ वें पर्व का कुछ भाग जिनसेन कृत है, और शेष आदि पुराण तथा उत्तरपुराण की रचना उनके शिष्य गुणभद्र द्वारा की गई है । यह समस्त रचना शक संवत् ८२० से पूर्व समाप्त हो चुकी थी। आदिपुराण की उत्थानिका में पूर्वगामी सिद्धसेन, समन्तभद्र, श्रीदत्त, प्रभाचन्द्र, शिवकोटि, जटाचार्य, काणभिक्षु, देव (देवनंदि पूज्यपाद) भट्टाकलंक, श्रीपाल, पात्रकेसरि, वादीभसिह, वीरसेन, जयसेन और कवि परमेश्वर, इन आचार्यों की स्तुति की गई है । गुणाढ्य कृत वहत्कथा का भी उल्लेख आया है । आदिपुराण पूरा ही प्रथम तीर्थकर आदिनाथ के चरित्र-वर्णन में ही समाप्त हो गया है। इसमें समस्त वर्णन बड़े विस्तार से हुए हैं, तथा भाषा और शैली के सौष्ठव एवं अलंकारादि काव्य गुणों से परिपूर्ण है । जैनधर्म सम्बन्धी प्रायः समस्त जानकारी यहां निबद्ध कर दी गई है, जिसके कारण ग्रंथ एक ज्ञानकोष ही बन गया है । शेष तेईस तीर्थंकर आदि शलाका पुरुषों का चरित्र उत्तरपुराण में अपेक्षाकृत संक्षेप से वर्णित है । इस
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