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________________ प्रथमानुयोग अपभ्रंश १६३ ११९६६ की मिली है, उससे इस रचना की उत्तरावधि भी निश्चित हो जाती है । यह रचना चार संधियों में पूर्ण हुई है । नायिका पद्मश्री अपने पूर्व जन्म में एक सेठ की पुत्री थी, जो बाल विधवा होकर अपना जीवन अपने दो भाइयों और उनकी पत्नियों के बीच एक ओर ईर्ष्या और सन्ताप, तथा दूसरी ओर साधना में बिताती रही। दूसरे जन्म में पूर्व पुण्य के फल से वह राजकुमारी हुई । किन्तु जो पापकर्म शेष रहा था, उसके फलस्वरूप उसे पति द्वारा परित्याग का दुख भोगना पड़ा । तथापि संयम और तपस्या के बल से अन्त में उसने केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष पाया । काव्य में देशों व नगरों का वर्णन, हृदय की दाह का चित्रण, सन्ध्या व चन्द्रोदय आदि प्राकृतिक वर्णन बहुत सुन्दर हैं । (सिंधी जैन सीरीज, बम्बई) सण कुमार - चरिउ ( सनत्कुमार चरित) के कर्ता हरिभद्र श्रीचन्द्र के शिष्य व जिनचन्द्र के प्रशिष्य थे, और उन्होंने अपने मिणाह चरिउ की रचना वि० सं० १२१६ में समाप्त की थी । प्रस्तुत रचना उसी के ४४३ से ७८५ तक के ३४३ रड्डा छंदात्मक पद्यों का काव्य है, जो पृथक् रूप से सुसंपादित और प्रकाशित हुआ है | कथा - नायक सनत्कुमार गजपुर नरेश अश्वसेन के पुत्र थे । वे एक बार मदनोत्सव के समय वेगवान् अश्व पर सवार होकर विदेश में जा भटके । राजधानी में हाहाकार मच गया । उनके मित्र खोज में निकले और मानसरोवर पर पहुंचे । वहां एक किन्नरी के मुख से अपने मित्र का गुणगान सुनकर उन्होंने उनका पता लगा लिया । इसी बीच सनत्कुमार ने अनेक सुन्दर कन्याओं से विवाह कर लिया था । मित्र के मुख से माता पिता के शोक संताप का समाचार पाकर वे गजपुर लौट आये । पिता ने उन्हें राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली । सनत्कुमार ने अपने पराक्रम और विजय द्वारा चक्रवर्तीपद प्राप्त किया व अन्त में तपस्या धारण कर ली । इसी सामान्य कथानक को कर्ता ने अपनी काव्यप्रतिभा द्वारा खूब चमकाया है। यहां ऋतुओं आदि का वर्णन बहुत अच्छा हुआ है । (डॉ. जॅकोबी द्वारा रोमन लिपि में सम्पादित, जर्मनी) इन प्रकाशित चरित्रों के अतिरिक्त अनेक अपभ्रंश चरित ग्रन्थ हस्तलिखित प्रतियों के रूप में नाना जैन शास्त्रभंडारों में सुरक्षित पाये जाते हैं, और सम्पादन प्रकाशन की बाट जोह रहे हैं । इनमें कुछ विशेष रचनाएं इस प्रकार हैं । वीर कृत जंबुस्वामि चरोउ (वि० सं० १०७६), नयनंदि कृत 'सुदंसण- चरीउ' ( वि० सं० १२०० ), श्रीधर कृत सुकुमाल - चरिउ । ( वि० सं० १२०८), देवसेन गणि कृत सुलोचना - चरित, सिंह (या सिद्ध) कृत पज्जुष्णचरिउ ( १२वीं १३वीं शती), लक्ष्मणकृत जिनदत्त - चरिउ (वि० सं० १२७५), धनपाल कृत बाहुबलीचरिउ (वि० सं० १४५४), रयधू कृत सुकोसल - चरिउ, धन्नकुमार-चरिउ, मेहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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