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प्रथमानुयोग-अपभ्रंश
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नयंधर उसे लेने आया । उसके भ्राता श्रीधर ने दीक्षा ले ली थी। माता-पिता भी नागकुमार को राजा बनाकर दीक्षित हो गये । नागकुमार ने दीर्घकाल तक राज्य किया। अन्त में अपने पुत्र देवकुमार को राज्य देकर उसने व्याल आदि सुभटों सहित दिगम्बरी दीक्षा ली, और मरकर स्वर्ग प्राप्त किया (स० ६)। पुष्पदंत ने इस जटिल कथानक को नाना वर्णनों, विविध छंद-प्रयोगों एवं रसों
और भावों के चित्रणों सहित अत्यन्त रोचक बनाकर उपस्थित किया है । (कारंजा, १६३३)
भविसबत्त-कहा (भविष्यदत्त कथा) के कत्र्ता धनपाल वैश्य जाति के धक्कड बंश में उत्पन्न हुए थे । उनके पिता का नाम माएसर (महेश्वर ?) और माता का नाम धनश्री था। इनके समय का निश्चय नहीं, किन्तु दसवीं शती अनुमान किया जाता है। यह कथा २२ सधियों में विभाजित है। चरित्रनायक भविष्यदत्त एक वणिक् पुत्र हैं। वह अपने सौतेले भाई बंधुदत्त के साथ व्यापार हेतु परदेश जाता है, धन कमाता है, और विवाह भी कर लेता है। किन्तु उसका सौतेला भाई उसे बार-बार धोका देकर दुःख पहुंचाता है। यहां तक कि उसे एक द्वीप में अकेला छोड़कर उसकी पत्नी के साथ घर लौट आता है, और उससे विवाह करना चाहता है। किन्तु इसी बीच भविष्यदत्त भी एक यक्ष की सहायता से घर लौट माता है, अपना अधिकार प्राप्त करता, और राजा को प्रसन्न कर राजकन्या से विवाह करता है। अन्त में मुनि के द्वारा धर्मोपदेश व अपने पूर्व भव का वृत्तान्त सुनकर, विरक्त हो, पुत्र को राज्य दे, मुनि हो जाता है। यह कथानक भी श्रुतपंचमी व्रत का माहात्म्य प्रकट करने के लिये लिखा गया है। ग्रन्थ के अनेक प्रकरण बड़े सुन्दर और रोचक हैं। बाल क्रीड़ा, समुद्रयात्रा, तोका-भंग, उजाड़ नगर, विमान यात्रा, आदि वर्णन पढ़ने योग्य है । कवि के समय में विमान हों या न हों, किन्तु उसने विमान का वर्णन बहुत सजीव रूप में किया है । (गायकवाड़ ओरि. सीरीज, बड़ौदा)
करकंडचरीज के कर्ता मुनि कनकामर ने अपना स्वयं परिचय दिया है कि वे द्विजवंशी व चन्द्रषि गोत्रीय थे। वे बैराग्य से दिगम्बर हो गये थे, उनके गुरु का नाम बुध मंगलदेव था, तथा उन्होंने आसाई नगरी में एक राजमंत्री के अनुराग से यह चरित्र लिखा। राजमंत्री के विषय में उन्होंने यह भी कहा है कि वह विजयपाल नराधिप का स्नेहभाजन, नृपभूपाल या निजभूपाल का मनमोहक व कर्णनरेन्द्र का आशयरंजक था, उसके प्राहुल, रल्हु और राहुल, ये तीन पुत्रीभी मुनि के चरणों के भक्त थे। सम्भवत; मुनि द्वारा उल्लिखित कर्ण
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