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________________ १६० जैन साहित्य किन्तु नागकुमार ने अपने पराक्रम द्वारा उसे वश में कर लिया । इससे दोनों ar विद्वेष और अधिक बढ़ा (सं० ३) । नागकुमार के पराक्रम की ख्याति बढ़ी और मथुरा का राजकुमार व्याल एक भविष्य वाणी सुनकर उसका अनुचर बन गया । श्रीधर ने अब नागकुमार को अपना परमशत्रु समझ मार डालने की चेष्टा की । पिता ने संकट निवारणार्थं नागकुमार को कुछ काल के लिये देशान्तर गमन का आदेश दे दिया (सं० ४ ) | नागकुमार राजधानी से निकलकर मथुरा पहुंचा, जहां उसने कान्यकुब्ज के राजा विनयपाल की कन्या शीलवती को बंदीगृह से छुड़ाकर उसके पिता के पास भिजवा दिया। यहां से चलकर वह काश्मीर गया, जहां उसने राजा नंद की पुत्री त्रिभुवनरति को वीणावाद्य में पराजित करके विवाहा । यहां से वह रम्यक वन मेंगया; और वहां कालगुफावासी भीमासुर ने उसका स्वागत किया (सं० ५) । अपने पथ प्रदर्शक शबर की सहायता से वह कांचन गुफा में पहुंचा; जहां उसने नाना विद्याएं प्राप्त कीं, व काल-बैताल गुफा से राजा जितशत्रु द्वारा संचित विशाल धनराशि प्राप्त की । तत्पश्चात् उसकी भेंट गिरिशिखर के राजा वनराज से हुई, जिसकी पुत्री लक्ष्मीमति से उसने विवाह किया। यहां मुनि श्रुतिधर से उसने सुना कि वनराज किरात नहीं, किन्तु पुण्ड्रवर्द्धन के राजवंश का है; जहां से तीन पीढ़ी पूर्व । नागकुमार के राजा बना दिया उसके पूर्वजों को उनके एक दायाद ने निकाल भगाया था आदेश से व्याल पुन्ड्रवर्द्धन गया; और वनराज पुनः वहां का गया; (सं० ६ ) । तत्पश्चात् नागकुमार ऊर्जयन्त पर्वत की और गया । बीच में गिरिनगर पर सिंध के राजा चंडप्रद्योत के आक्रमण का समाचार पाकर वहां गया, और वहाँ उसने अपने मामा की शत्रु से रक्षा की, एवं उसकी पुत्री गुणवती से विवाह किया । वहाँ से निकलकर उसने अलंघनगर के अत्याचारी राजा सुकंठ का वध किया, और उसकी पुत्री रूक्मिणी को विवाहा । वहां से चलकर वह गजपुर आया, और वहां राजा अभिचन्द्र की पुत्री चन्द्रा से विवाह किया ( सं ७ ) । महाव्याल के द्वारा उज्जैन की अद्वितीय राजकन्या का समाचार पाकर नागकुमार वहां आया, और उस राजकन्या से विवाह किया। वहां से वह फिर किष्किन्धमलय को गया, जहां मृदंग वाद्य में कर विवाहा । वहाँ से वह तोयावली द्वीप को गया, और अपनी विद्याओं की सहायता से वहाँ की बंदिनी कन्याओं को छुड़ाया (सं० ८ ) । पांड्य देश से निकलकर नागकुमार आन्ध्रदेश के दन्तीपुर में आया और वहां की राजकन्या से विवाह किया । फिर उसकी भेंट मुनि पिहिताश्रव से हुई जिनके मुख से उसने अपने व अपनी प्रिय पत्नी लक्ष्मीमति के पुर्वभव की कथा तथा श्रुतपंचमी व्रत के उपवास के फल का वर्णन सुना । इसी समय उसके पिता का मंत्री राजकन्या को पराजित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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