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________________ प्रथमानुयोग अपभ्रंश feचान्यादिहास्ति जैनचरिते नान्यत्र तद्विद्यते । द्वावेतौ भरतेशपुष्पवशनौ सिद्ध ययोरीदृशम् ॥ यहां कवि ने जो यह दावा किया है कि अन्यत्र ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो इस जैन चरित्र में न आ गई हो, वह उनके विषय और काव्य की सीमाओं को देखते हुए प्रसिद्ध प्रतीत नहीं होता है | १५७ अपभ्रंश में तीर्थंकर - चरित्र -- पुष्यदंत कृत महापुराण के पश्चात् संस्कृत के समान अपभ्रंश में भी विविध तीर्थंकरों के चरित्र पर स्वतंत्र काव्य लिखे गये । 'चंद पह चरिउ' यशः कीर्ति द्वारा हुंमड़ कुल के सिद्धपाल की प्रार्थना से ११ संधियों में रचा गया है। ये यशःकीर्ति वे ही हैं, जिनके हरिवंशपुराण का ऊपर उल्लेख किया जा चुका है । अतएव इसका रचना काल भी वहीं १५ वीं शती ई० है । 'सांतिनाह चरिउ' की रचना महीचन्द्र द्वारा वि० सं० १५८७ में योगिनीपुर (दिल्ली) में बाबर बादशाह के राज्यकाल में हुई । कवि ने अपनी गुरु-परम्परा में माथुर संघ, पुष्करगण के यशः कीर्ति, मलयकीर्ति और गुणभद्रसूरि का उल्लेख किया है; तथा अग्रवाल वंश के गर्ग-गोत्रिय भोजराज के पोत्र, व ज्ञानचन्द्र के पुत्र 'साधारण के कुल का विस्तार से वर्णन किया है । णेमिणाह चरिउ की रचना हरिभद्र ने वि० १२१६ में की। इसका अभीतक केवल एक अन्श 'सनत्कुमार चरित' सुसंपादित होकर प्रकाश में आया है, । एक और णेमिणाह चरिउ लखमदेव (लक्ष्मणदेव) कृत पाया जाता है, जिसमें चार संधियां व ८३ कडवक हैं । afa Ter में अपने निवास स्थान मालव देश व गोनंद नगर का वर्णन, और अपने पुरवाड वंश का उल्लेख किया है । रचनाकाल का निश्चय नहीं है, किन्तु इस ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति वि० सं० १५१० की मिली है, जिससे उसके रचनाकाल की उत्तरावधि सुनिश्चित हो जाती है । पासणाह चरिउ की रचना पद्मकीर्ति ने वि० सं० ६६२ में १८ संधियों में पूर्ण की थी । कवि ने अपनी गुरु-परम्परा में सेन संघ के चन्द्रसेन, माधवसेन और जिनसेन का उल्लेख किया है । दूसरा पासणाह चरिउ १२ संधियों में कवि श्रीधर द्वारा वि०सं० १९८६ में रचा गया है । कवि के पिता का नाम का नाम बील्हा था । वे हरियाणा से चलकर जमना पार वहां अग्रवाल वंशी नट्टल साहू की प्रेरणा से उन्होंने पासणाह चरि कवि असवाल कृत पाया जाता है, जो है । संधि के अन्त में उल्लेख मिलता है कि यह ग्रंथ संघाधिप सोनी (सोणिय ? ) गोल्ल और माता दिल्ली आये; और यह रचना की । तीसरा संघियों में समाप्त हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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