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जैन साहित्य
छोटे वसुदेव थे । समुद्र विजय के राजा होने पर वसुदेव नगर में घूमा करते थे, किन्तु इनके अतिशय रूप व कला-प्रावीण्य के कारण नगर में अनर्थ होते देख, राजा ने इनका बाहर जाना रोक दिया। इस पर वसुदेव गुप्त रूप से घर से निकलकर देश-विदेश भ्रमण करने लगे। इस भ्रमण में उन्हें नाना प्रकार के कष्ट भी हुए व अनेक लोमहर्षक घटनाओं का सामना करना पड़ा, जिनके वैचित्र्य के वर्णन से सारा ग्रन्थ भरा हुआ है । प्रसंगवश इसमें महाभारत, रामायण एवं अन्य विविध आख्यान आये हैं। यह ग्रंथ लुप्त वृहत्कथा के आधार व आदर्श पर रचित अनुमान किया जाता है । भाषा, साहित्य, इतिहास आदि अनेक दृष्टियों से यह रचना बड़ी महत्वपूर्ण है ।
हरिभद्र कत समरादित्य-कथा (८ वीं शती) में 'भव' नामक प्रकरण हैं, जिनमें क्रमशः परस्पर विरोधी दो पुरुषों के साथ साथ चलने वाले ६ जन्मातरों का वर्णन किया गया है । ग्रन्थ की उत्थानिका में मंगलाचरण के पश्चात् कथावस्तु को दिव्य, दिव्य-मानुष के भेद से तीन प्रकार का बतलाया गया है। कथा वस्तु चार प्रकार की कथाओं द्वारा प्रस्तावित की जा सकती है-अर्थ, काम, धर्म और संकीर्ण; जिनके अधम, मध्यम और उत्तम, ये तीन प्रकार के श्रोता होते हैं । ग्रन्थकर्ता ने प्रस्तुत रचना को दिव्य-मानुष वस्तुगत धर्म-कथा कहा है, और पूर्वाचार्यो द्वारा कथित आठ चरित्र-संग्रहणी गाथाएं उद्धृत की हैं, जिनमें नायक-प्रतिनायक के नौ भवांतरों के नाम, उनका परस्पर सम्बन्ध, उनकी निवास-नगरियां एवं उनके मरण के पश्चात् प्राप्त स्वर्ग-नरकों के नाम दिये गये हैं। अन्तिम भव में नायक समरादित्य मोक्षगामी हुमा और प्रतिनायक गिरिसेन अनन्त संसार-श्रमण का भागी। प्रथम भव में ही इनके परस्पर वैर उत्पन्न होने का कारण यह बतलाया गया है कि राजपुत्र गुणसेन पुरोहित-पुत्र ब्राह्मण अग्नि-शर्मा की कुरूपता की हंसी उड़ाया करता था, जिससे विरक्त होकर अग्नि शर्मा ने दीक्षा ले ली; और मासोपवास संयम का पालन किया । गुणसेन राजा ने तीन बार उसे आहार के लिये आमंत्रित किया, किन्तु तीनों बार विशेष कारणों से मुनि को बिना आहार लौटना पड़ा, जिससे क्रुद्ध होकर उसने मन में यह ठान लिया कि यदि मेरे तप का कोई फल हो तो मैं जन्मजन्मान्तर में इस राजा को क्लेश दू। इसी निदान-बंध के कारण उसकी उत्तरोत्तर अधोगति हुई, जब तक कि अन्त में उसे सम्बोधन नहीं हो गया । इन नौ ही भवों का वर्णन प्रतिभाशाली लेखक ने बड़ी उत्तम रीति से किया है, जिसमें कथा-प्रसंगों, प्राकृतिक वर्णनों व भाव-चित्रण द्वारा कथानक को श्रेष्ठ रचना का पद पाप्त हुआ है।
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