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________________ ... ६४ जैन साहित्य भी वेष्टित किये हुए आठ लाख योजन विस्तार वाला कालोदधि समुद्र है । कालोदधि के आसपास १६ लाख योजन विस्तार वाला पुष्करवर द्वीप है। उसके आगे उक्त प्रकार दुगुने, दुगने विस्तार वाले असंख्य सागर और द्वीप हैं। पुष्करवर-द्वीप के मध्य में एक महान् दुलंध्य पर्वत है, जो मानुषोत्तर कहलाता है, क्योंकि इसको लांघकर उस पार जाने का सामर्थ य मनुष्य में नहीं है । इस प्रकार जम्बूद्वीप, घातकी खण्ड और पुष्कराद्ध ये ढाई द्वीप मिलकर मनुष्यलोक कहलाता है । जम्बूद्वीप सात क्षेत्रों में विभाजित है, जिनकी सीमा निर्धारित करने वाले छह कुल पर्वत हैं । क्षेत्रों के नाम हैं-भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत। इनके विभाजक पर्वत हैं-हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी। इनमें मध्यवर्ती विदेह क्षेत्र सबसे विशाल है, और उसी के मध्य में मेरु पर्वत है । भरतक्षेत्र में हिमालय से निकलकर गंगा नदी पूर्व समुद्र की ओर, तथा सिन्धु पश्चिम समुद्र की ओर बहती हैं। मध्य में विन्ध्य पर्वत है । इन नदी-पर्वतों के द्वारा भरत क्षेत्र के छह खंड हो गये हैं, जिनको जीतकर अपने वशीभूत करने वाला सम्राट हो षट्खंड चक्रवती कहलाता है। मध्यलोक में उपयुक्त असंख्य द्वीपसागरों की परम्परा स्वयम्भूरमण समुद्र पर समाप्त होती है । मध्यलोक के इस असंख्य योजन विस्तार का प्रमाण एक राजु माना गया है । इस प्रमाण से सात राजु ऊपर का क्षेत्र ऊर्ध्वलोक, और सात राजु नीचे का क्षेत्र अधोलोक है। ऊवलोक में पहले ज्योतिर्लोक आता है, जिसमें सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारों की स्थिति बतलाई गई है। इनके ऊपर सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ठ शुक्र, महाशुक्र, शतार, सहस्त्रार, प्रानत, प्राणत, आरण और अच्युत, ये सोलह स्वर्ग हैं। इन्हें कल्प भी कहते हैं, क्योंकि इनमें रहने वाले देव, इन्द्र, सामानिक त्रायस्त्रिंश, पारिषद, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक इन दस उत्तरोत्तर हीन पदरुप कल्पों (भेदों) में विभाजित हैं । इन सोलह स्वर्गों के ऊपर नौ ग्रेवेयक, और उनके ऊपर विजय, वैजयन्त, जयंत अपराजित और सर्वार्थसिद्धि, ये पांच कल्पातीत देव-विमान हैं । सर्वार्थसिद्धि के ऊपर लोक का अग्रतम भाग है, जहां मुक्तात्माएं जाकर रहती हैं। इसके आगे धर्मद्रव्य का अभाव होने से कोई जीव या अन्य प्रवेश नहीं कर पाता । अधोलोक में क्रमशः रत्न, शर्करा, बालुका, पंक, धूम, तम और महातम प्रभा नाम के सात उत्तरोत्तर नीचे की ओर जाते हुए नरक हैं। जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अवसर्पणि और उस सर्पणि रूप से काल-चक्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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