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'भव्य मनुष्योप जाणी लेवुं जोईए के ज्यां हिंसा होय छे त्यां हुं ( प्रभु-धर्म-सुख ) होतो नथी. " ६२.
" अन्यायथी मनुष्योनो चोक्कस विनिपात थाय ज छे " ६७. " ज्यां अन्याय ( चोरी जारी) आदि दोष होय छे अने राजा ( राजकीय वर्ग) अन्यायी अने लोकोने दुःख देनारो होय छे, त्यां करोडो आफतो आवे छे. ज्यां प्रजामां पण आवा ज दोषो होय छे त्यां दुष्काळ वगेरेना भयो एनी माथे झझूमता होय छे. ज्यां लोको धर्मकार्यानो नाश करनारा, साधुओना विरोधी, दुष्टो अने महापापी होय छे, त्यां रोगो पण स्थिर निवास करे छे. ( ६८-६९-७० )
आमां जणावायेल विगत केवी अक्षरशः सत्य जणायी छे ! (१) आजे देशमां दारुपान केटलुं वधी रह्युं छे ?
(२) प्रजा अने राज्य केटली बेफाम हिंसा वधारी रधुं छे ? (३) अन्याय ए आजना जीवनमां वणाई गयुं नथी ? (४) अनीति विना न ज जीवी शकाय एवं वातावरण आजे नथी ? (५) भेळसेळ अने दगो ए आजनुं जीवनधोरण बनी गयुं नथी ? (६) न्यायना मंदिरोमां न्यायनुं शासन छे के कायदानुं ? (७) न्याय मंदिरोमां न्याय मेळववो केटलो कठण अने खर्चाळ छे ? (८) विद्या वधतां विनय विवेक वधी रह्यां छे के विलासो ? (९) प्रजा अने राजकीय वर्गमां नैतिक भ्रष्टाचार केटलो पांगर्यो छे ? आवा आवा अनेक दुगुर्णो जो जनसमूहना जीवनमां वणाई जाय तो पछी जीवनमां शुं प्राप्त थाय ?
(१) करोडो आफतो
(२) लीला के सूका दुष्काळो
(३) राष्ट्रीय युद्धो
(४) प्रादेशिक तोफानो
(५) राजकीय परिताप
(६) सामाजिक कलह (७) कौटुंबिक क्लेश (८) पारस्परिक अविश्वास (९) रोगोनो वसवाट
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