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________________ आजे आपणी पासे मात्र अशांति सिवाय शुंछे ? जो विश्वने शांति जोईए तो एने नीति नवी अपनाववी जोईशे, अन्यायादि दूर करी गुणो केळघवा तनतोड प्रयत्न करवा जोईशे. " साधूनां यत्र सत्कारो, दानमानादिभिः शुभः । तत्र देशे समाजे च, श्री-धृति-कीर्ति-कान्तयः ॥ ७६. यत्र देशे सदाचाराः, सद्विचाराश्च देहिनाम् । तत्र वृष्टयादिभिः शान्तिः, योगक्षेमसुखादयः ॥ ७७. [ नीतियोग] जे देशमां दान सन्मान वगेरे द्वारा साधु-पूज्य पुरुषोनो सत्कार थाय छे, ते देशमां अने ते समाजमा लक्ष्मी, धैर्य, यश, ओजस विगेरे होय छे. जे देशमा मानवो सदाचारी अने सदविचारशील होय छे त्यां सारा वरसाद वगेरे थाय छे अने शांति, योगक्षेम, सुख वगेरे सहज आवी मळे छे. ७६. ७७. __आजे विश्व दुःखमां सबडी रह्यु छे. एने ऊगरवाना बे मार्ग छे. संयम अने विनाश. सौ पोताना जीवनने सुसंयमित बनावे. मैत्र्यादि भावो जगज्जीव साथे बांधे, तो विनाशना आरे होवा छतां विश्व ऊगरी शके. नहि तो विनाश तो छ ज. गुणो नहि केळवीए तो विप्लव साय अने पृथ्वीनो बोजो ए रीते हळवो बने. पूज्य ज्योतिर्धर एवा आ महापुरुष ग्रन्थकारना ग्रंथनो समन्वयात्मक अभ्यास थाय अने ए रीते जीवनना ताणावाणानी सुयोग्य गुंथणी थाय तोज ए महापुरुषनी विश्वोद्धारनी भावना मूर्त बने. समन्वयात्मक अभ्यास करतां जीवननी विसंवादिता टाळी जीवनने समन्वयात्मक बनावg वधु आनंदप्रद रहेशे. उपसंहार : आ ग्रन्थ सर्वमान्य नियमोथी सुसंबद्ध छे अने ए माटे कोई ना न कही शके, ए छतां केटले अंशे ए व्यापाक बनशे ए हाल न कही शकाय, कारण के ग्रन्थकार पूज्य श्री योगनिष्ठ पुरुष होवा छतां एमणे जीवनमां जैनदर्शन अपनावेलो. अन्तिम तीर्थाधिपति परमात्मा श्री महावीर स्वामी एमनी रगरगमां व्यापक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001703
Book TitleJain Mahavira Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherShrimad Buddhisagar Sahitya Prakashan Granthamala Ahmedabad
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Sermon
File Size18 MB
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