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________________ ( ७५ ) संयुक्त व्यञ्जनों का विशेष परिवर्तन 'क्त' को 'क' मुक्त-मुक्क, मुत्त । शक्त-सक, सत्त । रुग्ण-लुक, लुग्ग। 'त्व' "'' मृदुत्व-माउक्क, माउत्तण । " "" दष्ट-डक्क, दह। [सूचना :-जहाँ दो-दो रूप दिए हैं वहाँ विकल्प से समझना चाहिए।] (पालि भाषा में भी शक्त-सक्क । प्रतिमुक्त-पतिमुक्क । देखिये-- पा० प्र० पृ० ४१ ( टिप्पणी)। रुग्ण-लुग्ग पृ० ४६ टिप्पण) कख२ 'पण' को 'क्ख' तीक्ष्ण-तिक्ख, विण्ह देखिये-'' विधान नियम दण को ण्ह, पृ० ७०। (तीक्ष्ण-तिक्ख, तिण्ह, तिक्खिण देखिए पा०प्र० पृ० ४८ टिप्पण) ३. 'स्त' को 'ख' स्तम्भ-खंभ, यंभ। 'स्थ' " " स्थाणु-खाणु अर्थात् ढूँठ वृक्ष, थाणु ( महादेव)। 'स्फ' को " स्फेटक-खेडश्र । स्फोटक-खोडन । स्फेटिक-खेडि। ग्ग' 'क्त' को 'ग्ग' रक्त-रग्ग, रत्त । १. हे० प्रा० व्या० ८।२। २. हे० प्रा० व्या०८२।३। १. हे० प्रा० व्या० २८,७,६ । ४. हे० प्रा० व्या०८।२।१०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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