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________________ ८. 'ट'' को 'ट्ठ' सं० अन्तःपुर निश्चिन्त महान् महन्त ९. 'ज्ञ' " को 'ण' 'ज्ञ' को 'ण' ( ६८ ) शौ० अन्देउर निश्चिन्द महन्द 'ठ' विधान इष्ट-इट्ठ | दष्ट- टट्ट | Jain Education International मुष्टि-मुट्ठि । सृष्टि-सिठि । -: - श्रनिष्ट- श्रणि । दृष्टि-दिट्ठी । यष्टि-लट्ठि 1 ( श्रपवाद - इष्टा - इट्टा । उष्ट्र-उष्ट । संदष्ट संदट्ट | ) मागधी भाषा में '' तथा '' के स्थान में 'स्ट' २ बोला जाता है । 'z' an 'a' 'ष्ठ' को 'स्ट' я то श्रन्तेउर । निच्चिन्त । महन्त । कष्ट-कट्ठ । पुष्ट-पुट्ठ ! सुराष्ट्र - सुरट्ठ । सुष्ठु - शुस्तु, प्रा० सुट्ठ । पैशाची भाषा में 'ट' के बदले 'सट' ३ बोला जाता है । कष्ट - कस्ट, प्रा० कट्ठ । दृष्ट दिसट प्रा० दिछ । पट्ट -पस्ट, प्रा० पट्ट | भट्टारिका - भस्टालिया, प्रा० भट्टारिया | भट्टिनी - भस्टियो, प्रा० भट्टिणी | कोष्ठागार - कोस्टागाल, प्रा० कोट्ठागार । ( पालि भाषा में 'ट' को 'ट्ठ' होता है । देखिये पा० प्र० पृ० २६ तथा उसी पृष्ठ का टिप्पण ) For Private & Personal Use Only 'ण' विधान आज्ञा - श्राणा । ज्ञान - पाण। विज्ञान - विण्णाण । प्रज्ञा - पण्णा | १. हे० प्रा० व्या० ८|१३४१ ९. हे० प्रा० व्या० ८/४/२९० | ३. हे० प्रा० व्या० ८|४| ३१४ । ४. हे० प्रा० व्या० ८।२।४२ संज्ञा-संगा । www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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