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( ६७ )
'झ' विधान 'ध्य' को 'झ' ध्वान-माण | ध्यायति-झायइ । 'ध्य'' को 'ज्म' उपाध्याय-उवज्झाय । बध्यते-बज्झइ ।
विन्ध्य-विंझ । साध्य-सज्झ । स्वाध्याय-सज्झाय । 'ह्य' को 'झ' नह्यति-नन्झति । गुह्य-गुज्झ । मह्यं-मझ।
सह्य-सज्झ। 'ह्य" को 'यह' गुह्य-गुटह, गुज्झ । सह्य-सय्ह, सज्झ । 'क्ष' को 'झ' चीण-झीण । क्षीयते-झिजह । 'क्ष' को 'झ' प्रक्षीण-पझोण ।
(पालि भाषा में भी भ्य को झ और ह्य को यह होता है । क्रमशः देखिये-पा०प्र० पृ० १६-ध्य म , ध्य-ज्झ । पा०प्र० पृ. २२ह्य-रह)
'ट' विधान 'त'' को 'दृ' कैवर्त-केवट्ट । नर्तकी-नट्टई । वर्ती-वट्टी ।
वर्तुल-वट्टल । वार्ता-वट्टा। ... ( कुछ शब्दों में 'त' के 'रेफ' का लोप हो जाता है। जैसे :
आवर्तक-आवत्त । मुहूर्त-मुहुत्त । मूर्ति-मुत्ति । धूर्त-धुत्त । कीर्तिकित्ति । कार्तिक-कत्तिक । कर्तरी-कत्तरी इत्यादि )
(पालि भाषा में 'त' को 'ट' होता है। देखिए-प्रा०प्र० पु०५८) शौरसेनी भाषा में किसी-किसी प्रयोग में 'न्त' को 'न्द'५ हो जाता है। जैसे :
१. हे० प्रा० व्या० ८।२।२६ । २. हे० प्रा० व्या० ८।२।१२४ । . ३. हे० प्रा० व्या० ८।२।३। ४. हे० प्रा० व्या०८।२।३०। ५. हे. प्रा० व्या९८४२६१ ।
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